कविता

आओ, संस्कार दीप जलाएं! 

आओ, संस्कार दीप जलाएं!
सुंदर मानव जन्म मिला हैं पुण्योदय से,
क्यों कलुषित स्वार्थ, लोभ, लालच कषायों से।।

दुष्प्रवृत्ति, भ्रष्टाचार मानवता को लील रही है,
घटते संस्कार, दुराचार उलझनों की जड़ है।।
रिश्तों में पावनता, आत्मीयता, अपनापन नहीं,
कुत्सित मनोभावों से सिसके हरियाली महीं।।
प्रेम, ममता, दुलार, आदर, सम्मान विहीन घर,
नहीं गूंजती उन्मुक्त हंसी, नहीं खिलती बहार।।
बहन, बेटियां, नटखट बचपन, उल्लसित युवा,
कोई नहीं सुरक्षित, हरपल मन में भय, हौवा।।
लूटपाट, खून खराबा, हिंसा, दुराचारी वर्तन,
पशुता का व्यवहार करें, मानव दानव बन।।
खुशबू रहित सुंदर फूल नहीं लगते मनोहारी,
धर्म भाव, संस्कारों से सजे जीवन फुलवारी।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८