कविता

रक्षाबंधन

बहिन भाई का अमर प्यार,
होता है राखी का त्यौहार
बहिन की रक्षा की खातिर,
भाई का निज जीवन न्यौछार
कान्हा के हाथ से रक्त देख
द्रौपदी ने पल्लू फाड़ दिया
पांचाली ने फिर चीर बांध
कृष्णा से रक्षा वचन लिया
जब चीर हरण हुआ सभा मध्य
बैठे थे ज्ञानी और प्रबुद्ध
खीचता रहा साड़ी का छोर
वो दुष्ट दुशासन अतिचारी
उपहास हो रहा सभा मध्य
चीखती रही अबला नारी
तब जाकर गिरधर नागर ने
द्रौपदी का चीर बढ़ाया था
लाज बचाकर भगिनी की
राखी का फर्ज निभाया था
ना कोई बहिन निर्भया होगी
आओ आज करें यह प्रण
भारत की बहिन सुरक्षित होगी
ना होंने देंगे चीर हरण

— प्रदीप शर्मा

प्रदीप शर्मा

आगरा, उत्तर प्रदेश