कविता

मन

अब जी लेना चाहती हूं, उन्मुक्त गगन में मैं,
इससे पहले कि मैं तारीख पर याद आऊं !!
आज उड़ना चाहती हूं, मन के पंखों से
इससे पहले की तारो में ढूंढी जाऊं !!
इक प्यारा सा मन मेरा, भाव तो हजारों है,
एक जीवन है मेरा, यादे तो अनेकों हैं !!
कभी समोसा सा मेरा मन, कचौड़ी सा भी कभी,
रसगुल्ले सा मीठा और संदेश भी देता मेरा मन !!
मन प्रक्षेपित सा, प्रशंसित सा भी है,
आलोचित भी हुआ, उदासित भी हुआ मन !!
कलुषित सा भी और कभी छिछोरा सा मन,
उतावला और उपासना सा मे मेंरा मन !!
पवन सा भी मेरा मन और सादगी पसंद भी,
कभी राधा कभी कृष्ण रूप में विचरता ये मन !!
जी लेना चाहती हूं, उन्मुक्त गगन में मैं,
इससे पहले कि मैं तारीख पर याद आऊं !!
— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर