सामाजिक

बस्ते का बोझ बच्चों की उन्नति मैं साधक या बाधक

आने वाले सुंदर कल की तस्वीर हैं बच्चे,
उज्ज्वल उन्नत देश की तकदीर हैं बच्चे

जी हाँ ,आज के बच्चे कल का भविष्य हैं आज का बच्चा कल का नागरिक बनता है बच्चों की परवरिश ,उनका रहन सहन  उनकी शिक्षा का देश के भविष्य पर सीधा असर पड़ता है जैसे -जैसे युग बदल रहा है वैसे -वैसे बच्चों की परवरिश, रहन -सहन और शिक्षा में भी परिवर्तन हो रहे हैं तख्ती से कंप्यूटर का युग आ गया है बच्चों की शिक्षा में भी बढोत्तरी हुई और शिक्षा का स्तर ऊँचा होता गया
जिस तरह समाज में आधुनिकता के साथ पुराने रीति -रिवाज कभी -कभी बीच में अंगडाइयां लेकर अपनी उपस्थिति जता देती हैं उसी तरह कुछ लोग आधुनिक शिक्षा को बोझ बता कर प्रगति में बाधक बन रहे हैं वास्तविकता तो यह है कि माता -पिता ,शिक्षक बच्चों को बस्ते के जिस रूप से अवगत करायेंगे ,वे उसे वही समझेंगे अब ये उनके उपर निर्भर है कि वे बस्ते को बोझ बनाते हैं या जिम्मेदारी ?बचपन ही वह पडाव होता है जहाँ से बच्चे के व्यक्तित्व और जीवन का स्वरूप आरम्भ होता है जब बच्चा अपनी किताबें बस्ते में डाल कर विद्यालय जाता है तो वह उसका बोझ नही अपितु उसमें उसके व्यक्तित्व की परछाईं ,उसके मां-बाप के सपनों को साकार करने का सामान ,समाज के प्रति जिम्मेदारी का सफर नामा होता है माता -पिता का यह सोचना कि बच्चा इतना भारीबस्ता कैसे उठाएगा अपने बच्चे को कमजोर बनाने की नीति है ,उनका लाड -प्यार ही उसकी प्रगति में बाधक बनता है यदि बच्चे को बस्ता भारी लगता है तो उसका समाधान भी है प्रति दिन प्रयोग होने वाली पुस्तकों विद्यालय में संग्रहित करके रखें इससे पुस्तकों का बोझ भी कम होगा और उनका रखरखाव भी ठीक होगा
एक तरफ तो माता -पिता बच्चों को आधुनिक बनाने का प्रयत्न करते हैं ,फ़िर पढाई में आधुनिकता और  दवाब का विरोध क्यों ? याद रखिए अधिक ज्ञान के लिए ज्ञान के स्रोत भी अधिक होंगे ,कम ज्ञान के स्रोत से बच्चे आगे कैसे बढ़ पाएंगे ।
प्राइवेट स्कूलों को भी इस दिशा में आगे आकर सरकार के सामने ठोस प्रस्ताव रखने चाहिए ताकि समस्या का समाधान खोजा जा सके। आखिर बच्चे राष्ट्र की धरोहर हैं और उनकी शारीरिक और मानसिक स्थितियों को हमें समझना होगा और कोई ना कोई व्यावहारिक हल खोजना होगा ताकि पढ़ाई और बस्ते के बोझ के बीच एक समन्वय बन सके।
इस विषय को लेकर हमने लिखा  है –
नन्हे मुन्नेे फूलों की, यह कैसी लाचारी,
डगमग चले स्कूल को, लादे बस्ता भारी।
लादे बस्ता भारी, कलेजा मुँह को आता,
वजन में क्या ज्ञान, बेचारा समझ न पाता।
कह सारिका जागृति, भेद हम बतलावेंगे,
गर न मिली नौकरी, तो कुली बन जाऐंगे।
बस यही तो भैया, हमें समझ में आता।।

तथ्य और आंकड़े:-
स्कूल जाने वाले लगभग 30 प्रतिशत बच्चे कमर दर्द की शिकायत करते हैं जिससे बच्चे झुककर बैठने लगते हैं या उनका पास्चर खराब हो जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अगर बच्चे नियमित रूप से अपने वजन का 10 प्रतिशत से अधिक बोझ कंधे पर उठाएंगे तो उनको स्थायी नुकसान होगा लेकिन एक सर्वे के अनुसार बच्चे अपने वजन का 20-25 प्रतिशत वजन उठा रहे हैं। हाल में प्रकाशित स्टेट गवर्नमेंट कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार 10 साल से कम उम्र के 60 प्रतिशत बच्चों का बचपन उनकी क्षमता से अधिक भार वाले स्कूल बैग्स के नीचे दब रहा है।स्कूल के भारी बैग्स के कारण बच्चों को कईं स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसके केवल शारीरिक ही नहीं मानसिक और भावनात्मक प्रभाव भी होते हैं।
कमर, गर्दन और कंधों में दर्द। हाथों में झुनझुनी आना, सुन्न् हो जाना और कमजोरी आ जाना। लंबे समय में होने वाले नुकसान थकान और गलत पोश्चर विकसित होना। गर्दन और कंधों में तनाव के कारण सिरदर्द होना।
स्पाइन का क्षतिग्रस्त हो जाना। स्कॉलियोसिस की समस्या, जिसमें स्पाइन एक तरफ झुकने लगती हैं।
फेफड़ों पर दबाव आने के कारण सांस लेने की क्षमता कम हो जाना।स्कूल बैग्स के बोझ के कारण बच्चों की कमर झुक रही है। उनका पोश्चर भी खराब हो रहा है। कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बच्चों का भारी स्कूल बैग ले जाना जारी रहा तो आगे चलकर उन्हें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है जैसे स्पॉन्डिलाइटिस, झुकी हुई कमर और पोश्चर की समस्या।भारी बैग उठाने का बच्चों पर भावनात्मक प्रभाव भी पड़ता है, मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि भारी बैग उठाने के कारण बच्चों में तनाव विकसित हो जाता है जिससे उनकी पढ़ाई में रूचि घट जाती है।

माता-पिता के लिए सुझाव:-

जब अपने बच्चे के लिए स्कूल बैग खरीदें तो ऐसी डिजाइन वाला खरीदें जिसके शोल्डर स्ट्रैप्स पैड वाले हों जिससे गर्दन और कंधों के क्षेत्र पर दबाव कम आए।
बैग को लटकाने के बाद अपने बच्चे का पोश्चर चेक करें। अगर ऐसा लगे कि आपका बच्चा आगे की ओर झुक रहा है या उसकी कमर झुक रही है। तो चेक करें कि बैग ज्यादा भारी तो नहीं हो गया है या उसे ठीक तरह से पैक नहीं किया गया है।
यह सुनिश्चित करें कि आपका बच्चा स्कूल केवल वही चीजें ले जाए जो उसे उस दिन जरूरी हो, अनावश्यक किताबों और दूसरी चीजों को निकाल दें।
बच्चों में बचपन से ही एक्सरसाइज और योग की आदत डालें ताकि वो शारीरिक रूप से फिट और एक्टिव रहें।

स्कूल प्रशासन के लिए सुझाव:-

स्कूल प्रशासन को चाहिए कि वह नियम बनाए कि बच्चे हल्का बैग लेकर स्कूल आएं। स्कूल में लॉकर होना चाहिए जहां बच्चे अपनी पुस्तकें और दूसरी चीजें रख सकें जिनकी जरूरत केवल क्लासरूम में ही होती है।
स्कूल प्रशासन यह नियम बनाए कि वह क्लास वर्क के लिए केवल नोटबुक ही मंगाएं जिसमें सभी विषयों के लिए अलग-अलग सेक्शन हों अलग-अलग विषयों के लिए अलग-अलग कॉपियां न मंगाएं।
शिक्षकों को हर पीरियड में पढ़ाना शुरू करने से पहले दो मिनट की एक्सरसाइज कराना चाहिए ताकि बच्चे एक्टिव रहें और एक ही पोश्चर में लंबे समय तक ना बैठे रहें।
शारीरिक शिक्षा को अनिवार्य बना देना चाहिए ताकि बच्चे फिट रहें।
सरकार को चाहिए कि वह शिक्षा व्यवस्था में सुधार करे ताकि किताबों का बोझ कम हो, तकनीक-आधारित शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए।
यह विडम्बना ही है कि शरीर से कमजोर, मस्तिष्क से कोमल बच्चे भारी भरकम बस्ते लिए स्कूल जाते हैं लेकिन कालेज जाते हुए वेे लगभग खाली हाथ या डायरी लिए होते है। यह भी विचारणीय है कि लोगों में पढ़ाई के बाद पुस्तकें पढ़ने में घटती रूचि का कारण कहीं बचपन के भारी बस्ते की दहशत का परिणाम तो नहीं। अनावश्यक पुस्तकों पर लगाम लगाने की जरूरत है। लेकिन  यह समीक्षा हडबड़ाहट से नहीं  वैज्ञानिक ढ़ंग से होनी चाहिए। विषय की निरंतरता, समझ के सोपान के साथ- साथ जरूरी है कि ऐसे वातावरण का निर्माण किया जाये जहां छात्रों को पढने और अध्यापकों को पढ़ाने में तनाव नहीं बल्कि आनंद की अनुभूति होनी चाहिए।

— डॉ. सारिका ठाकुर “जागृति”

डॉ. सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (म.प्र)