गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

गुल ही गुल है खार निभा
थोड़ा सा किरदार निभा।
तंग गली में चलना सीख
तब विस्तृत संसार निभा।
मिलना-जुलना सबसे है तो
 आखिर में अभिसार निभा।
सुख-दुख के हैं जाल घनेरे
थोड़ा सा जंजाल निभा।
पता नहीं क्या मिल पायेगा
अपना भी तो प्यार निभा।
चिड़ियों का कलरव सुन कर
पेड़ों का गुंजार निभा।
हर पग साथ चला चल रह
बाकी चमन बिहार निभा।
एक आस्था छोटी पड़ती
दूजी में उल्लाल निभा।
हार-जीत के क्या मायने
मिलती हैं जब हार निभा।
अतिशय कठिन चढ़ाई पर
साहस का व्यवहार निभा।
मिल जायेगी जीत तुझे
बस थोड़ी सी हार निभा।
— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

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