कविता

नारियों के प्रतिष्ठा का पर्व नवरात्रि

आदि शक्ति माँ भगवती,शत-शत तूझे प्रणाम है।
तू ही मुक्ति,तू ही भक्ति,और, तू रक्षा का धाम है।
तू जग-जननी,तू जन-कल्याणी,तेरा दुर्गा नाम है।
भक्तन के तुम पालक, आशीष देना तेरा काम है।
तू दयामयी,तू वात्सल्यमयी,तू ममता की छांव है।
तुम कृपा के सागर हो, चारो धाम ही तेरा पाँव है।
हे महिषमर्दिनी,हे वज्रधारिणी,तू ही पुरनकाम है।
तुम ही सुर-नर की रक्षक,माँ तुमसे जग महान है।
माँ की सेवा होती है तो,माँ तेरी  पूजा हो जाती है।
माँ की खुशियों में ही माँ, तू  भी खुश हो जाती है।
नारी शक्ति की प्रतिष्ठा से, तेरी  सेवा पूरी होती है।
नव दिन नवरात्र में यही, साधना  जरूरी होती है।

जहां नारी का होता सम्मान, वहीं होता उत्थान है।
जहां नारी की पूजा होती है,वहीं देवों का ध्यान है।
बेटी के मान का प्रतिष्ठा का,पर्याय भी नवरात्रि है।
बेटी के अभिमान, रक्षा का,पर्याय भी नवरात्रि है।
ये नारियों के प्रतिष्ठापन का, पर्व होता नवरात्रि है।
ये नारियों के स्थापन का,भी पर्व होता नवरात्रि है।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578