हास्य व्यंग्य

मैं मुर्दा हूं

 

आइए!
मेरी बात ध्यान से सुनिए,
मैं अपने पूरे होशोहवाश
बिना किसी डर, जोर दबाव के
आप सबको बताता हूँ,
आपकी आँखों पर पड़े परदे हटाता हूँ।
आप भी जब मुझे मुर्दा मान रहे हैं
पर विश्वास से कह नहीं पा रहे हैं
फिर जिंदा या मुर्दा रखने पर क्यों तुले हैं?
भ्रम के चंगुल में जकड़े क्यूं है?
सबूत देकर ऐलान करता हूँ
मैं मुर्दा हूँ, मैं खुद भी कहता हूँ।
माँ बाप, परिवार है नहीं कोई
आज अपना नहीं रहा कोई
स्कूल मेंं न दाखिला मिला मुझे
राशनकार्ड, परिवार रजिस्टर में
नाम कभी आया नहीं,
वोटर, आधार कार्ड दिवास्वप्न ही रहे ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, बैंक खाते
किसी और नाम के है।
फर्जी कागजों से चुनाव तक लड़ा मैंनें
पर ये सरकार भी मुझे मुर्दा ही मान रही है
तभी तो मेरी जमीन की वरासत
किसी और के नाम कर दी।
कत्ल तक सरेआम करके फरार हूँ मैं
और देख लो आज तक आजाद हूँ।
जब मेरे जिंदा होने का कोई सबूत ही नहीं
तो मैं जीवित होने के गुमान में क्यों रहूं?
आप भी भ्रम से बाहर निकलिए
जब मैंने स्वीकार कर लिया है
तब आप भी स्वीकार कर लीजिए,
मेरा एक अनुनय है एक अहसान कीजिये
एक बार इस मुर्दा प्राणी का
सब मिलकर सार्वजनिक सम्मान कर दीजिए
फिर उसी मंच से दुनिया को भी बता दीजिये
‘मैं मुर्दा हूँ’ का औपचारिक ऐलान कर दीजिए।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921