लघुकथा

“सिर काट दो!”

“ममा आज हमारी मैम ने अलग-अलग विषयों पर कल कोई कहानी सुनाने का गृह कार्य दिया है. मुझे लालच का विषय दिया गया है, ममा प्लीज़ कोई कहानी सुना दो न!” कविश ने निहोरा लिया.
“अरे ये काम तो दादी मां बड़े शौक से कर देंगी, उन्हें ढेरों कहानियां आती हैं.”
लालच पर कहानी! तो सुनो.
“दीनू बहुत ही दीन अवस्था में था. वह गुजारे के लिए हमेशा परेशान रहता था.
एक दिन उसकी चिंतित अवस्था देखते हुए एक साधु बाबा ने उसे एक थाली दी, जिससे रात को कोई एक चीज मांगकर ढक कर रखना था, सुबह मनचाही चीज मिल जाएगी. पर एक से अधिक चीजें मांग लीं तो सब कुछ गायब हो जाएगा और थाली भी.
घर आकर उसने खुशी से पत्नी को बताया, वह भी बहुत खुश हुई. उस रात उसने सोने की मोहरें मांगीं, उन्हें सुबह मिल गईं.
फिर एक रात उसने महल, फिर दासी, फिर नौकर-चाकर सब कुछ एक-एक करके मांग लिया, तो अगले दिन उसे मन चाही चीज़ मिल जाती थी. गरीबी की जगह अब उनकी अमीरी का ठिकाना नहीं था.
एक रात को दीनू घर नहीं आ पाया. उसकी लालची पत्नी ने थाली से एक से अधिक चीजें मांग लीं और थाली ढककर सो गई.
अगले दिन सुबह जब दीनू घर आया तो वहां न महल था, न नौकर-चाकर. उसकी पत्नी उसी पहले वाली टूटी-फूटी झोंपड़ी में दुःखी हालत में बैठी थी. सब चीजें भी गायब हो गईं और थाली भी.”
“इसका मतलब लालच रूपी राक्षस का सिर काट देना चाहिए न दादी मां!”
अगले दिन कविश ने दादी मां की तरह चटखारे लेकर कक्षा में कहानी सुनाई. उसके कहानी सुनाने के अंदाज़ से सभी बच्चे भी खुश हुए और मैम भी. कहानी खत्म होते ही सभी बच्चे एक साथ बोल उठे-
“लालच रूपी राक्षस का सिर काट दो!”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244