कविता

कविता

जाने कहां गये
वो दिन
सुबह से शाम तक
काम की अफरा तफरी
बच्चों की चिल्ल पों
मैं तब झिड़कती रहती
रखो सामान तरतीब से
जाने कहां खो गये वे पल
ना बच्चे कब बड़े हुवे
चूजों के पर निकले
जैसे उनके भी
और वे सब कुछ
झिड़क उड़ गये
जाने कहां गये वो पल
अब तरसती हूं कि
कब वे आयें
सब कुछ बिखेर जायें
पहले देती थी हिदायतें
ये करो वो ना करे
अब सोचती हूं
जो मरजी करो
बस आकर
मेरे गले लग जाओ
काश एसा होता
लौट आते वो पल
जी लेती जी भर
मौज मस्ती के पल
उनके संग
जाने कहां गुम हुवे
वो पल
— गीता पुरोहित

गीता पुरोहित

शिक्षा - हिंदी में एम् ए. तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा. सूचना एवं पब्लिक रिलेशन ऑफिस से अवकाशप्राप्त,