कहानी

कहानी – समझौता

ये कहानी है आशा कि जो अपने नाम के ठीक विपरीत परिस्थितियों से गुजर रही थी अपनी आशाओं को दिल के किसी कोने में दफनाए बस जी रही थी , इस बुझे से जीवन में प्रकाश तब आया जब मर्यादित रिश्तों कि सीमाओं को उल्लांघ आशा फिर अपने पहले के नाम सीमा से मिली आईये मिलते हैं आज आशा से …
आशा… अकेले में बैठ खुद से बतिया रही थी खुद से ही बतियाते हुए बोली ज़िन्दगी में कितनी बार ना चाहते हुए भी समझौता करना पड़ता है । कुछ समझौते बहुत ही खुशी के साथ , तो कुछ समझौते अपनी बेबसी मजबूरी के साथ । सच जैसे जिन्दगी बनी और टिकी हुई है समझौतों पर ही ।
तभी ….. आशा के घर के दरवाजे पर कोई आकर दस्तक देता है । आशा खुनस खा कर बोली अरे अब कौन आ गया इस भरी दोपहरी में । खुद के मन को स्थिर करते हुए बे-मन से दरवाजा खोला पर ये क्या दरवाजा खोलते ही जैसे उसके आंखों कि चमक दो गुनी हो गई हो , खुशी इतनी कि छुपाए ना छुप रही थी आशा कि आंखें चकाचौंध हो अचंभे से भी भरी हुई थी दरवाजे पर खड़े इंसान और आशा के बीच जैसे जुंबा ने चुप्पी ले ली थी ।
सहसा.. दरवाजे पर खड़े व्यक्ति ने बोला सीमा अंदर आने को नहीं कहोगी मुझे । आशा , अपना वही शादी के पहले का नाम सीमा सुन कर फूली ना समा रही थी और नाम भी उस इंसान के मुंह से जिसके साथ कभी आशा का प्रेम खुले आसमान में मन मे भरे सपने उड़ान भर बादलों तक आशियाना कायम करने का विचार हो चला था कभी । परंतु जाती धर्म , जात-पात के दुश्मन दलालों ने उनके राह में रोड़े लाकर खड़े कर दिए । आशा फट से बोली अरे आओ ! आओ ना राजेश अंदर , हां राजेश ही तो नाम था आशा के रूहानी आत्मा से अभी तक जुड़े पहले प्रेम का जिसके साथ आशा जिंदगी बसर करना चाहती थी ।
राजेश.. राजेश भीतर आते ही पूछे , कैसी हो सीमा ?
आशा(सीमा).. सीमा बोली ठीक हूं , तुम कैसे हो राजेश ? तुम्हें मेरे घर का पता कहां से मिला ? मुझे तो लगा अब हम कभी एक दूजे को देख भी नहीं पाएंगे यूं अचानक यहां मेरे शहर में ?
राजेश .. अरे ! सीमा तुमको अच्छा नहीं लगा मेरा आना तो मैं चला ही जाता हूं । आशा(सीमा).. अरे-अरे ! नहीं राजेश , मैं तो यूंही पूछ रही थी ।
राजेश.. सीमा एक साथ इतने सवाल । आशा(सीमा).. बोली अरे नाराज क्यों होते हो , मैं तो यूंही उदास हो गई थोड़ा सीमा राजेश को नाराज देख ।
 तभी .. राजेश हसा ओर बोला अरे सीमा मैं मजाक कर रहा हूं ।
आशा(सीमा).. बोल उठी तुम वैसे ही हो अभी भी मुझे सता कर ही तुम्हें आज भी आनंद आता ।
राजेश बोला – सीमा तुम भी तो अभी तक वैसी ही हो जल्दी नर्वस हो जाती हो ।
राजेश बोला – मेरा तबादला हुआ तुम्हारे शहर में , तो यहां आने से पहले तुम्हारी वो खासमखास सहेली थी ना बचपन की सहेली मीना उसको बहुत पूछा , मनाया तब जाकर वो बातों ही बातों में तुम्हारे भाई से तुम्हारे घर का पता लिखवाकर आई और चुपके से मुझे लाकर दिया , एसे तुम्हारा पता मिला मुझे , पर आज भी मीना को चाकलेट की रिश्वत दी , वो भी पागल नहीं बदली , पहले उसको दो चाकलेट देता था तो हम दोनों को मिलाने के लिए वो कैसे भी करके साथ देती थी । इस बार तो कमाने लगा खुद कि कमाई थी तो पूरा एक डब्बा चाकलेट और गिफ्ट मिठाई दी , तब जाकर वो तुम्हारा पता लाकर दी मुझे ।
आशा(सीमा)…  ये सुनकर जोर-जोर से खुलकर हसने लगी जैसे सालों बाद उसने हसा हो ।
राजेश.. ओर बताओ सीमा तुम कैसी हो ? तुम्हारे बच्चे कितने हैं ? तुम्हारे पति इस समय कहां हैं ? सीमा बोली लो अब तुम्ने कितने सवाल एक साथ पूछ लिये राजेश । सीमा बोली मेरा एक बेटा है जो हास्टल में रह कर पढ़ाई कर रहा है , पति कुछ दिन के लिए आफिस के काम से बैंगलोर गये हुए हैं , कल ही तो गये मेरे पति ।
राजेश.. दबे शब्दों में धीरे से बोल उठा अंग्रेजी में वॉव ।
आशा(सीमा)..  बोली क्या ?
 राजेश बोला..  कुछ नहीं ।
आशा(सीमा)…  बोली अच्छा तुम बताओ कहां पर रह रहे हो मेरे शहर में तुम्हारी शादी हुई की नहीं ? बच्चे तुम्हारे ?
राजेश.. हां हुई ना मेरी भी शादी राधिका नाम है मेरी पत्नी का । एक बेटी और एक बेटा है मेरा । फिलहाल उनको साथ नहीं लाया सोचा पहले कुछ दिन यहां रहकर सब बंदोबस्त कर लूं फिर परिवार को यहां लाऊंगा और इस समय बच्चों कि परिक्षा भी चालू होने वाली थी तो सोचा ये वर्ष बच्चे उसी स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी कर लें । फिर अगर सही लगा तो यहां लाकर यहां के ही किसी अच्छे से स्कूल में एडमिशन करवा लूंगा ।
आशा(सीमा).. हां यही ठीक रहेगा , सीमा बोली मुस्कुराते हुए ।
राजेश.. अरे यार तुम्हारे घर पहली बार आया हूं ना पानी और ना ही तुम्हारे हाथ से बनी चाय के लिए पूछा तुमने । बस बातें ही करती रहोगी क्या ?
आशा(सीमा).. अरे मैं तो तुम्हें देख खुशी के मारे सब भूल ही गयी । अभी ठहरो लाती हूं ।
राजेश और आशा(सीमा) दोनों के दिलों के तार आंखों ही आंखों में एक दूजे से कुछ उम्मीद कर रहे थे पर रिश्तों कि मर्यादा के बंधनों ने जैसे उन दोनों के लबों को सी रखा था । आशा पहले कुछ नाश्ता पानी लाई ओर राजेश को खाने का आग्रह किया ।
आशा(सीमा).. तुम राजेश खाओ तब तलक मैं गैस पर चाय बनने के लिए रख कर आती हूं ।
राजेश बोला..  ठीक है ! सुनो सीमा अदरक और इलायची डालना मत भूलना ।
आशा(सीमा).. बोली किचन से ही हां-हां मुझे याद है राजेश तुम्हारी चाय कि टेस्ट तुम्हें कैसी चाय पसंद है , अभी बनाती हूं । आशा बहुत ही खुशी से चाय बनाने लगी । आशा चाय गैस पर रख कर राजेश के पास वाले सोफा पर आकर बैठ गई , राजेश बोला..  सीमा अगर तुम्हें आज भी मेरी चाय के स्वाद और पसंद के बारे में  याद हे तो , तुम्हें आज भी वो सब यादें भी याद होंगी जो हमनें साथ में वक्त गुजारा था ।
आशा(सीमा)..  शर्मा के राजेश से नजरें चुराने लगी ।
राजेश बोला.. बोलो सीमा !
आशा(सीमा)..  बोली हां मुझे याद है शर्मा के ।
तब राजेश बोला.. तुम खुश तो हो ना सीमा ।
आशा(सीमा).. भरे मन से राजेश से सवाल कर बैठी राजेश सच कहूं या झूठ ?
राजेश बोला..  सीमा सच कहो ।
आशा(सीमा).. बोली राजेश जिंदगी बस समझौता है और अपनी ही जिंदगी से समझौता करके चेहरे पर मुस्कान का नकाब लगा कर बस जी रही हूं अपनी जिंदगी ।
राजेश.. क्यों सीमा ? एसा क्यों बोल रही हो ? फिक्र भरे लहजे में राजेश सवाल कर बैठा सीमा से क्या हुआ सीमा मुझे नहीं बताओगी कुछ भी तुम ? क्या मैं इतना पराया हो गया तुम्हारे लिए सीमा ? हमदर्दी , अपनापन , प्यार , फिक्र से भरे शब्द सुन राजेश के आगे सीमा जैसे टूट सी गयी ओर उठ कर राजेश से लिपट गई वही राजेश जिसके साथ वो जी भर कर अपनी जिंदगी जीना चाहती थी ।
 राजेश.. अरे !  सीमा क्या हुआ , राजेश ने भी सीमा को अपनी बॉंहों में भर लिया और दोनों के बांहों कि कसक कसने लगी , राजेश ने सीमा के माथे को चूमा । कुछ देर लिपटने के बाद ।
आशा.. आशा अपने होंश में आई ओर बोली माफ करना राजेश मैं इस तरह तुम्से राजेश…  ने सीमा के लबों पर ऊंगली रख उसे चुप करा दिया और बोला सीमा आज भी मेरे दिल में तुम्हारे लिए वही प्यार हे तुम्हारा हक है मुझ पर और उसी हक के चलते तुमने मुझे अपनी बॉंहों में भरकर खुशी दी है । ये कहते हुए राजेश ने फिर सीमा का माथा चूम लिया , सीमा फिर राजेश के सीने पर सर रख लिपट गई । आशा(सीमा) बोली..  राजेश क्यों आखिर भगवान ने हमें एक दूजे का नहीं होने दिया ? आज मेरी जिंदगानी सिर्फ विरान सी है बच्चा हास्टल में रहता , पति महीने में बीस दिन तो आफिस के टूर पर रहते , सारा समय अकेले रहती हूं घर पर , जो दस दिन घर पर रहते तो हर वक्त कहते आज नहीं थकावट बहुत है महिने में सिर्फ एक बार चाहत पूरी होती वो भी कभी -कभी तो पूरा महीना ही नहीं होती । समझौता बन कर रह गई है जिंदगी मेरी बस मन मार के रह रही हूं , बोलती हूं अपने पति को कोई नौकरी कर लेती हूं पर वो भी उनको मंजूर नहीं । बोलते क्या कमी है तुम्हें मस्त खाओ-पियो कुछ कमी हो पैसों कि तो वो भी बताओ मैं देता हूं , सीमा बोली राजेश से राजेश तुम ही बताओ क्या पैसा ही सब कुछ होता मेरे लिए समय ही नहीं , उनके पास बस आफिस टूर , टूर और बस उनका काम ओर टूर इसी चक्की के बीच पिस कर रह गई हूं मैं तो अपना मन मार के ।
राजेश बोल उठा.. अरे सीमा मैं हूं ना तुम अब चिंता मत करो हम एक ही शहर में हैं जब मन करे मुझसे मिलने चले आना और भग्वान ने भी कुछ ना कुछ सोच समझ कर ही हमारी मुलाकात आज इतने सालों बाद करवाई है तो इसमें भी कुछ तो भला ही होगा ।
आशा(सीमा) बोली..  हां राजेश , अब तुम आ गये हो तो शायद मैं जिसे रिश्ते में बस मन मार के समझौता समझ के निभा रही हूं , उस रिश्ते को मजबूरी में ही सही पर निभा सकूं । ना जाने कितनी बार मन में आया कि घोंट दूं इस बेमन से बोझिल और समझौते से भरे रिश्ते का गला मैं , पर बस अगर यहां रही हूं तो अपने बच्चों कि खातिर चाहे मेरे बच्चे आज हास्टल में पढ़ते हैं पर वो आज भी जैसे मेरी रूह में बसते हैं रोज फोन पर ना सही पर सप्ताह में तीन बार बात करती अपने लाडलों से । आशा(सीमा) और राजेश चाय कि चुस्कियां लेते हुए बस बातों ही बातों में बिती हुई यादों के बवंडर में गोते लगा रहे थे ना जाने कब दोनों मर्यादा के रिश्तों में रहकर भी सब रिश्ता उलांघ गये , गये कैसे तीन घंण्टे से अधिक का समय कट गया पता ही ना चला ।
राजेश ने सीमा से कहा..  देखो आज भी सीमा तुम्हारे साथ रहकर कैसे समय कट गया पता भी ना चला । चलो अब मैं चलता हूं ।
सीमा बेमन से…  मन मारते हुए बोली अब कब आओगे राजेश तुम ?
राजेश बोला..  कोशिश करता हूं कल फिर आने की , क्यों कि कल मेरे घर का सामान आ रहा ट्रांसपोर्ट से तो उस सामान को जमाना है सही तरह मुझे । जैसे ही काम से फुर्सत मिलेगी मैं आऊंगा । सहसा ही !
राजेश बोला… अरे सीमा सुनों कल तुम्हीं आ जाओ ना मुझे मेरे घर का सामान सही जगह रखवाने में मदद् कर देना मेरी । इस तरह हम कल भी काम के साथ-साथ एक दूसरे को समय दे पाएंगे । आशा(सीमा)..  जैसे यही चाहती हो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा हो उसने तुरंत हामी भर दी । सीमा ने राजेश से कहा ठीक हे राजेश कल में चाय नाश्ता खाना सब लेकर सुबह ग्यारह बजे तक पहुंच जाऊंगी । पति तो वैसे भी मेरे टूर पर हैं ।
राजेश बोला…  सीमा क्या मैं तुम्हें लेने आऊं घर पर ?
आशा(सीमा) बोली – अरे ! नहीं राजेश । मैं खुद अपनी सुविधानुसार आ जाऊंगी , वरना मोहल्ले के लोग तुम्हारे साथ जाता देख मुझे दो बाते बनाएंगे । ठीक है सीमा राजेश बोला , चलो अब चलता हूं मैं कल मिलते हैं ।
राजेश… ने जाते-जाते अपने दिल में छुपाए एक अरमान को पूरा किया ओर वो अरमान था समझौते के दलदल में फंसी उसके पहले प्यार सीमा के माथे को चूमना ।
आशा(सीमा)..  मुस्कुरा दी राजेश से सम्मान व अपने प्रति प्यार भाव पाकर । फिर दरवाजे पर तब तक खड़ी रही जब तक राजेश की बाईक उसके आंखों के आगे से ओझल ना हुई । राजेश के जाते ही आशा दूसरे दिन राजेश के घर जाने के लिए क्या कपड़े पहनेगी , क्या बना के ले जाएगी इसी विचारों में खो गई , सच बोझिल रिश्तों के दलदल में ना जाने आज भी कितनी आशा (सीमाएं) होंगी जो उड़ना चाहती होंगी , जो प्यार , समय , सम्मान के लिए तरसती होंगी , एसे तड़पते गले घोंटते जैसे रिश्तों को सिर्फ यही नाम देना उचित है । समझौता-समझौता-समझौता ।
— वीना आडवाणी तन्वी

वीना आडवाणी तन्वी

गृहिणी साझा पुस्तक..Parents our life Memory लाकडाऊन के सकारात्मक प्रभाव दर्द-ए शायरा अवार्ड महफिल के सितारे त्रिवेणी काव्य शायरा अवार्ड प्रादेशिक समाचार पत्र 2020 का व्दितीय अवार्ड सर्वश्रेष्ठ रचनाकार अवार्ड भारतीय अखिल साहित्यिक हिन्दी संस्था मे हो रही प्रतियोगिता मे लगातार सात बार प्रथम स्थान प्राप्त।। आदि कई उपलबधियों से सम्मानित