मुक्तक/दोहा

मानवाधिकार दिवस पर

बाँट बाँट कर मेरे देश को, जाति धर्म क्षेत्र के टुकड़ों में,
मानवाधिकार की बात कर रहे, वह भी टुकड़ों टुकड़ों में।
ब्राह्मण को पण्डित कह लो, या वैश्य कहो बनिया कंजूस,
अगर हरिजन को कुछ भी बोला, सजा मिलेगी टुकड़ों में।
हमारी संस्कृति ने सिखलाया, हुनर सदा सम्मान बना था,
त्रेता द्वापर सतयुग देखो, कर्म ही सबकी पहचान बना था।
संविधान ने आकर हमको, जाति धर्म क्षेत्र में बाँट दिया,
मानवता को टुकड़ों में बाँटा, जो सनातन की पहचान बना था।
— अ कीर्ति वर्द्धन