सामाजिक

बड़े बुजुर्गों की कहावतें सत्य का प्रतीक

वैश्विक स्तरपर भारतीय संस्कृति और सभ्यता प्रतिष्ठा के लिए प्रसिद्ध है जिसे खास देखने, अनुभव करने, दुनियाभर के सैलानी भारत की पावन धरती पर अपनी जिज्ञासा की अनुभूति करने आते हैं। यूं तो भारतीय संस्कृति और सभ्यता के ऐसे हजारों व्यवहार, रिश्ते, मान सम्मान, आतिथ्य, बड़े बुजुर्गों की कहावतें, अपनापन, उनका मान सम्मान, भगत प्रह्लाद, भगवान राम सहित अनेकों प्रतीक हैं परंतु वर्तमान पाश्चात्य संस्कृति के पैर पसारने को लेकर ही हमारे बड़े बुजुर्गों चिंतित हैं। इसलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से उनकी कहावतों और चिंताओं पर चर्चा करेंगे।
हम बुढ़ापे के सहारे को देखें तो बड़े बुजुर्गों की कहावत है कि चार पैसे बचा के रखो बुढ़ापे में काम आएंगे, कहावत है, चाल चले सादा निभायें बाप दादा,कई बार युवा जब बिज़नस में कमाने लगते है तो वे अपने पैसे से चार पहिया गाड़ी ले लेते है. और दिन में कई बार बेवजह इधर-उधर लेकर जाते है और पैसा खर्च करते है. तब बड़े बुजुर्ग गुस्से में यही कहावत कहते है, इस कहावत का अर्थ होता है कि साधारण जीवन उत्तम होता है,बिज़नस चल रहा है तो ठीक है अगर बिज़नस में घाटा लगा तो गाड़ी बेचनी पड़ेगी और साधारण जीवन जीना पड़ेगा. तब लोग हँसेंगे कि पहले गाड़ी चल रहा था अब बैलगाड़ी से चल रहा है. इसलिए बड़े बुजुर्ग फ़िजूल खर्ची से बचते थे और साधारण जीवन जीते थे।
एक सटीक मिसाल वर्तमान प्रैक्टिकल लाइफ में हमें देखने को भी मिल रही है!! हालांकि बुढ़ापे के सहारे में अपना परिवार, बेटा, औलाद भी सशक्त माध्यम है,सहारा है परंतु वर्तमान परिपेक्ष में जिस तरह हम देख रहे हैं कि अपने बड़े बुजुर्गों, माता पिता के साथ ऐसा नकारात्मक व्यवहार किया जा रहा है कि परिवार टूट रहे हैं, औलाद अपने जीवन साथी के साथ देश विदेश में जॉब करने निकल पड़े हैं, बुजुर्गों की वृद्धाश्रम में बढ़ती संख्या औरपारिवारिक झगड़ों झमेलों को देखकर बुजुर्गों की उपरोक्त कहावतों का संज्ञान लेना जीवन का आवश्यक अंग बन गया है। हम वर्तमान परिपेक्ष में कुछ अपवादों को छोड़कर बुजुर्गों को देखें तो, वृद्धावस्था में जब उन्हें सबसे ज्यादा औलाद के सहारे की जरूरत होती है, तब उन्हें वृद्धाआश्रमों में या कहीं भी यूं ही बेसहारा छोड़ दिया जता है। उम्र के साथ-साथ शंकित और सामथ्र्य में कमी आने लगती है, इसे पहले की तरह स्वीकार करने की बजए परिवार का हर सदस्य उनके व्यवहार और आचरण के प्रति शिकायती रुख अपना लेता है। उन्हें अनुपयोगी समझ उनसे किसी भी तरह छुटकारा पाना चाहता है।
इन पारिवारिक झगड़ों पर अदालती फैसलों के सामने आने से समस्या की गंभीरता का पता चलता है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया में जिस तेजी से बूढ़ों की संख्या बढ़ रही है, उससे स्थिति आगे और गंभीर हो सकती है। परिवार में उपेक्षित बुजुर्गो को रोज-रोज के अपमान से बचाने और उनके स्वास्थ्य व सुविधाओं का ध्यान रखने के लिए देश में इसके समाधान को तीव्र गति से रेखांकित करनें की जरूरत है।
हम इन्हीं औलादों को माता-पिता द्वारा बचपन से युवा बनाने को देखें तो, माता पिता के कितने भी बच्चे हों, वे आज भी कई कष्ट उठाकर और अपना पेट काट कर भी सबको प्यार से पालते हैं। कोई बच्च कितना भी नालायक क्यों न हो, वे उसे अपने से अलग करने की बात सोच भी नहीं सकते, लेकिन दुख की बात है कि बड़े होने पर यही बच्चे मिलकरभी अपने माता-पिता का उत्तरदायित्व नहीं निभा सकते। ऐसी औलाद माता-पिता की संपत्ति पर तो अपना अधिकार जताती है, लेकिन उनके प्रति अपना फर्ज भूल जती है।
हम यौनअवस्था से ही रोडमैप बनाकर बुढ़ापे की तैयारी को देखें तो, यौवनारंभ से बुढ़ापे की सोचकर नियमित आय का श्रोत बनाना बुढ़ापे का सबसे बड़ा सहारा है। हम साठ पैसठ साल तक निष्क्रिय रह कर कैसे आशा कर सकते हैं कि इस आयु में कुछ कर पाएंगे, इस लिए यौवनारंभ से ही इस आयु का सामना करने की तैयारी आवश्यक है। हम पर सहारे की गारंटी नियमित आय श्रोत है। बुढ़ापा हमारे जीवन की वह अवस्था है जो हर इंसान के जीवन में आना ही है। हमसे पहले की पूरी पीढ़ी तो बुढ़ापे के लिए खुद को तैयार करने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी क्योंकि उनके व्यवहार और परिवार दोनों के सहारे जीवन यात्रा कैसे पूरी हो जाती थी ,उन्हें पता ही नहीं चलता था।
अब वह समय नहीं रह गया है और ना ही वैसे लोग रह गए हैं जिनके पास किसी दूसरे के लिए फुर्सत हो इसलिए व्यक्ति को सोचना पड़ जाता है। थोड़ा सा ध्यान दें तो बुढ़ापा सुखद हो सकता है। पैसे के मामले में हमेशा दिमाग से काम ले और समस्त धन कों बच्चों पर ना लुटा कर थोड़ा सा बुढ़ापे के लिए अवश्य संचित करके रखें। बुढ़ापे में धन का होना बहुत आवश्यक होता है।कभी किसी अन्य वजह से अपनी तुलना न करें। थोड़ा सा ध्यान रखकर हमारा बुढ़ापा संतोषजनक हो सकता है। सबसे संबंध अच्छे रखें जिससे कि बुढ़ापे में यदि बच्चे दूर रहते हो तो आपका सामाजिक दायरा हमारे काम आए और हमको अकेलापन व घबराहट न महसूस हो।
जवानी में हर व्यक्ति को संतुलित जीवन जीना होगा जिससे कि बुढ़ापा आने तक उसका शरीर रोगों का घर ना हो जाए। अच्छी आदतें और उचित खानपान शरीर को अधिक समय तक स्वस्थ रखता है।व्यक्ति को अपने कार्य स्वयं करने की आदत होनी चाहिए ।यह आदत बुढ़ापे तक व्यक्तिको सक्रिय रहती है और थकान नहीं आने देती।अपने शौक को बुढ़ापा आ गया है समझ कर, कभी समाप्त न करें। आपके शौक आपको विटामिन की भांति ऊर्जा देंगे और आपके समय का सदुपयोग होगा, यह हमेशा याद रखें। बच्चों से संबंध अच्छे रखना चाहिए। हर वक्त उन पर अपनी इच्छाओं को थोपना उचित नहीं होता। यदि हमारी अनावश्यक इच्छा है उन पर नहीं थोपेंगे तो वे हमारा और अधिक ध्यान रखेंगे।बच्चों की यथासंभव मदद अवश्य करे। बहू के साथ हमेशा अच्छा व्यवहार करें।
अब वह समय नहीं रह गया है और ना ही वैसे लोग रह गए हैं जिनके पास किसी दूसरे के लिए फुर्सत हो इसलिए व्यक्ति को सोचना पड़ जाता है। थोड़ा सा ध्यान दें तो बुढ़ापा सुखद हो सकता है। बुढ़ापा हमारे जीवन की वह अवस्था है जो हर इंसान के जीवन में आना ही है। हमसे पहले की पूरी पीढ़ी तो बुढ़ापे के लिए खुद को तैयार करने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी क्योंकि उनके व्यवहार और परिवार दोनों के सहारे जीवन यात्रा कैसे पूरी हो जाती थी ,उन्हें पता ही नहीं चलता था।
हम, सरकार की पहल को देखें तो, बैंकों ने ‘रिवर्स मॉरगेज’ का प्रावधान शुरू किया है, जिसके तहत जिनके पास अपना मकान है, वे उसे बैंक को गिरवी रखकर बदले में पैसा ले सकते हैं और उस मकान में रहते हुए उस पैसे से अपना जीवन-यापन कर सकते हैं। उनकी मृत्यु के बाद अगर उनके बच्चों को वह मकान चाहिए तो बैंक का कज्र और ब्याज चुकाकर वापस ले सकते हैं। बुढ़ापे में सुख-शांति से रहने के लिए ऐसे ही और उपायों पर भी गौर करना जरूरी है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि, चाल चले सादा निभाएं बाप दादा चार पैसे बचा कर रखो, बुढ़ापे में काम आएंगे। सृष्टि में जब तक जीवन है बड़े बुजुर्गों की कहावतें सत्य का प्रतीक साबित होती रहेगी।
— किशन सनमुख़दास भावनानी 

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया