कविता

उपासना

इष्टदेव की समीपता कहलाती है उपासना,
निःस्वार्थ भाव सहित भक्ति है श्रेष्ठ उपासना.
सबके भले में अपना भी भला होना मानना,
कहलाती है सर्वकल्याण-मयी उत्कृष्ट उपासना.
 नवल स्वर्णिम दिवस हेतु प्रातः प्रभु का धन्यवाद,
उपासना है व्यर्थ ही न करना किसी से प्रतिवाद.
आज्ञा में रह करना बड़ों का स्नेहिल सत्कार,
उपासना है छोटों को देना प्रेमिल प्यार.
अपेक्षाएं अल्प रखना है सच्ची उपासना,
यथा लाभ सन्तुष्ट रहना है सच्ची उपासना.
सुख-दुःख समय से आने-जाने हैं,
सच्चा उपासक दोनों को एक सम माने हैं.
अनुकूलता-प्रतिकूलता को जो प्रभु-प्रसाद मानें,
सन्त-महन्त जन उनको सच्चा उपासक जानें.
कर्म तो करना ही है, मान जो सत्कर्म करें,
दुष्कर्म से विमुख हो, सच्चे उपासक दुःख हरें.
ईर्ष्या-द्वेष से निरत मन की निर्मलता,
ऐसी उपासना देती है तन-मन को सबलता.
नयनों में हो छवि राम निष्काम की,
धनुषधारी दशरथ-सुत आनन्द धाम की.
पर निन्दा को माने जो पातक भारी,
उस उपासक से हर आपदा-विपदा हारी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244