कविता

तलाश

जब से होश संभाला
खुद की तलाश कर रहा हूं
दर दर भटक रहा हूं
यहां वहां दिन रात
लक्ष्य की तलाश में।
पर अब तक निराश हूं
थककर चूर हो गया हूं
तन ही नहीं मन भी
अब हारने लगा है
वक्त भी अब जैसे
मुंह चिढ़ाने लगा है।
क्या आप में किसी के पास
मेरी मंजिल का पता है,
या मेरी मंजिल ही लापता है।
कोई मदद को आगे भी नहीं आता
कोई बताए भला मेरी खता है क्या?
क्या मेरी तलाश अधूरी ही रहेगी
मेरी मंजिल भी कभी न मिलेगी।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921