कविता

वैलेंटाइन डे

आइये हम सब मिलकर वैलेंटाइन डे मनाएं
एक मुर्दे का गुणगान करें
क्या करना है पुलवामा को याद करके
महज़ एक घटना ही तो है
जिसमें चंद वेतन भोगी खेत गये
शहीद कहलाने के लिए मौत को गले लगा गए।
क्या मिल गया उन्हें अपनी जान देकर
चंद फूल, सलामी और फोटो फ्रेम में टंगे गये
अपने परिवार को जीवन भर के आंसू दे गये
मां बाप परिवार को असहनीय दुख ही नहीं
पत्नी को विधवा और बच्चों को अनाथ कर गए।
मगर हम आंसू क्यों बहाएं
उन्हें याद क्यों करें, पुष्पांजलि क्यों दे?
हमने तो कुछ खोया नहीं
न ही उनकी कमाई का एक पैसा जाना
फिर ये तो सरासर उनकी बेवकूफी थी
सेना में जाने से पहले क्या इतना भी न समझ पाये
थोड़े से वेतन के लिए अपनी जान गंवाकर
तिरंगे रुपी कफ़न में लिपट घर चले आये।
उनकी खातिर हम अपना मन क्यों मारें,?
हमें क्या पड़ी है जो हम अपना मगज मारें।
कौन सा हम रोज वैलेंटाइन डे मनाते हैं
कौन सा हम रोज रोज चोरी चुपके
अपनी संस्कृति सभ्यता को ठेंगा दिखाते हैं।
खुल्लम ख्याल प्यार तो आप हमें करने देते नहीं
एक दिन मौका मिलता है साल में
इस दिन भी हम मनमानियां न करें
ऐसा तो हो ही नहीं सकता ।
क्या रखा है हमारी संस्कृति सभ्यता भरे प्यार में
जो है अंग्रेजियत मिश्रित,आधुनिकता के
नग्न रंगीनी बाजार में।
आप भी कहां अटके हैं
धुलवाया पुलवामा के चक्कर में
छोड़िए इस मनहूसियत को
मस्ती कीजिए और वैलेंटाइन डे का भरपूर आनंद लीजिए
खुल्लम खुल्ला मिल रहे आमंत्रण को स्वीकार कीजिए
महज एक दिन की बात है
जब आज भर थोड़ी आजादी है
कथित प्यार के चक्कर में
जब खुद बिछने को शहजादी है।
फिर आप इतना असमंजस में क्यों हैं
पुलवामा को याद करने वाले बहुत हैं
अपने दिमाग से निकालिए ये सब
भौरों की तरह आप बस
फूलों का महक लीजिए
उनका मधुपान कीजिए
और वैलेंटाइन डे को यादगार बनाइए।

*सुधीर श्रीवास्तव

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