कविता

हे ईश्वर तू ही बता

हे ईश्वर तू ही बता
दोष जमाने का है या मेरी किस्मत का
आखिर मैं भी तो एक बेटी बहन और मां हूं
जन्मदात्री निर्माणकर्ता भी हूं इन्सान की
उससे पहले मैं एक इंसान हूं
मेरी भी जरुरतें हैं,भूख है
पापी पेट की आग बुझाने की मजबूरी है
तभी तो हाथ फैलाए हूं
कुछ भीख ही सही पेट भरने के लिए
तो कुछ चाहिए ही सही।
लाख सब मेरे अपने हैं
पर मेरे लिए तो सब महज सपने हैं।
सबने दुत्कारा ही है मुझे
तो मैंने भी सबसे आस छोड़ दी है,
खुद को भाग्य के सहारे छोड़ दिया है
मिल गया तो खा लिया
वरना पेट दबाकर, भगवान का नाम लेकर
चुपचाप सो गई।
सब ऊपर वाले की माया है
या भाग्य का खेल
मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आया
सिवाय इसके कि कोई किसी का नहीं
सब सिर्फ छलावा है
हे ईश्वर तू बता तेरी दुनिया में
कब मेरा बुलावा है,
मुझे इस धरा पर भेज तूने भला
मुझ पर ये कैसा जुल्म ढाया है
क्या अभी भी तू कुछ नहीं समझ पाया है?
मुझे तिगुनी का नाच नचाया है?
इससे आखिर तूने भला क्या सुख पाया ?

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921