कविता

कविता

यूं ही किसी दिन ऐसा भी होता
राह में तुम बेसाख्ता मिल जाते !
यूं ही किसी दिन ऐसा भी होता
मैं गीत गुनगुनाती तुम साज छेड़ जाते !
यूं ही किसी दिन ऐसा भी होता
मैं ख्वाब संजोती तुम पूरे कर जाते !
यूं ही किसी दिन ऐसा भी होता
लब खामोश रहते आंखें बात कर जाते !
यूं ही किसी दिन ऐसा भी होता
कलियां मैं सजाती तुम खुशबू बिखेर जाते !
चांद मैं सजाती तुम तारे तोड़ लाते
खुशियों से आंखें नम होती लब मुस्कुराते !
यूं ही किसी दिन ऐसा भी होता
मैं तुम्हारी होती और तुम मेरे होते !!

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P