धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

माता शबरी जयंती विशेष (24 फरवरी)

माता शबरी श्री राम की परम भक्त हुई। जिनकी भक्ति से द्रवित होकर प्रभु श्री राम को उनके झूठे बेर खाने वन में आना पड़ा।  वास्तव में श्रीराम का वन गमन कई कारणों से संबंधित रहा, इसका एक प्रमुख कारण यह भी था कि माता शबरी कई वर्षों से प्रभु श्रीराम के आगमन की प्रतीक्षा कर रही थी। माता शबरी भील समुदाय की बालिका थी, इनका नाम श्रमणा था शबर जाती की भील बालिका होने के कारण बाद में इनका नाम शबरी हुआ। इनके पिता भील समुदाय के प्रमुख थे। युवावस्था में जब इनका विवाह एक भील बालक से निश्चित कर दिया गया तब विवाह के उत्सव के रूप में सैकड़ों पशुओं को बलि देने के लिए एकत्र किया गया। इतने सारे पशुओं की बलि के समाचार से माता शबरी स्तब्ध थी, वे नहीं चाहती थी कि उनके कारण इतने मूक प्राणियों की मृत्यु की जाए। उन्होंने अपने पिताजी को बलि प्रथा से रोकना भी चाहा परंतु परंपरा के अनुसार बलि देना भील समुदाय के लिए निश्चित था और क्योंकि इनके पिता समुदाय के प्रमुख थे इसलिए उन्हें भी परंपरा मानना आवश्यक था। जब माता शबरी ने देखा कि उनके विरोध करने के बाद भी पशुओं की बलि होने वाली है तब वे अपना विवाह छोड़कर दंडकारण्य वन में भाग जाती है। इसी वन दंडकारण्य में मतंग ऋषि का आश्रम था, माता शबरी भी ऋषि मतंग की सेवा करना चाहती थी, सो वे आश्रम से नदी तक जाने वाले मार्ग को प्रतिदिन साफ करती, उसके कांटे हटाती और उस पर बालू बिछा देती। जब ऋषि मतंग पूजा करने के लिए प्रातः नदी के लिए प्रस्थान करते तब उन्हें मार्ग बहुत सुखद प्रतीत होता उन्हें समझने मैं देर नहीं लगी यह माता शबरी ही है, जो प्रतिदिन उनका मार्ग कंटक रहित कर देती हैं । ऋषि मतंग ने माता शबरी को बुलाकर उन्हें आश्रम में रहकर भक्ति करने का आशीर्वाद दिया। जब ऋषि मतंग का स्वर्ग सीधारने का समय हुआ तब उन्होंने माता शबरी को बुलाकर कहा कि “अब मेरे जाने का समय आ चुका है, कुछ समय पश्चात विप्र, धेनु, संत की रक्षा हेतु प्रभु का अवतार धरती पर होने वाला है, तुम आश्रम में ही रह कर उनकी प्रतीक्षा करना, वे यहां अवश्य आएंगे।” ऋषि पतंग की आज्ञा के अनुसार माता शबरी आश्रम में ही रहकर प्रभु श्री राम की प्रतीक्षा करने लगी। प्रतीक्षा करते करते कईं वर्ष बीत गए प्रत्येक दिन माता शबरी वन से पुष्प लेकर आती और आश्रम के मार्ग को साफ करके उसे पुष्पों से सज्ज करती, साथ ही उनके अल्पाहार के लिए बेर तोड़ कर लाती और उन्हें चख चख कर मीठे बेर प्रभु के लिए अलग रखती। ऐसा करते करते बहुत समय बीत गया अब माता शबरी वृद्ध हो चुकी थी परंतु एक दिन उन्हें समाचार मिला कि दो सुंदर राजकुमार वन में आ रहे हैं यह जानते ही माता शबरी भाव विभोर हो गई। तुरंत वन में जाकर अच्छे पुष्प तोड़कर लाई, मार्ग को साफ करके सज्ज किया तथा बेर को भी चख चख कर मीठे बेर प्रभु के लिए अलग रखे। जैसे ही प्रभु श्री राम आश्रम के निकट आते हैं सहज ही उनकी जिज्ञासा आश्रम में उपस्थित संतो से मिलने की होती है। उन्हें मालूम था कि आश्रम ऋषि मतंग का आश्रम है, प्रभु श्री राम जब आश्रम की ओर आ रहे थे पुष्प से सज्ज सुंदर मार्ग देखकर वह समझ गए कि यह माता शबरी ही है जो वर्षों से उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। परंतु छोटे भाई लक्ष्मण उनकी प्रसन्नता और मार्ग के सज्ज होने का यह कारण समझ नहीं पाए। आश्रम में पहुंचते ही प्रभु को देखकर माता शबरी के अश्रु निकल आते हैं, वह शीघ्र करके उनके बैठने का प्रबंध करती हैं और वन से लाए हुए बेर उन्हें समर्पित करती हैं। लक्ष्मण जी यह देखकर अचरज में थे कि माता शबरी के रखे हुए जूठे बेर प्रभु श्री राम बड़े आनंद से ग्रहण कर रहे थे। माता शबरी पास ही बैठकर प्रभु के दर्शन का लाभ ले रही थी वर्षों से उन्हें इसी परम आनंद की ही तो प्रतीक्षा थी। छोटे भाई लक्ष्मण ने बेर उठा तो लिए परंतु झूठे होने के कारण खाएं नहीं, इसका परिणाम तुलसीदास रामचरितमानस में लिखते हैं कि इसी कारण से राम रावण युद्ध में शक्ति लगने के कारण लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे। यह समझने की अत्यंत आवश्यकता है कि प्रभु श्री राम ने अपने संपूर्ण जीवन में निषाद राज से मित्रता को निभाया, केवट की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद दिया, माता शबरी की भक्ति और प्रतीक्षा का प्रतिफल उन्हें दर्शन देकर और उनके जूठे बेर आनंद से खाकर चुकाया अर्थात प्रभु ने श्री राम अवतार सर्व सामान्य दिन हीन बंधु बांधवो माताओं के प्रेम व स्नेह के कारण ही लिया। उनका दैवीय अवतार राज्य करने के लिए नही, बल्कि प्रजा को एक आदर्श सुशासन देने के लिए हुआ। जिसमें किसी व्यक्ति या प्राणी में कोई भेद नही। प्रजा का जन जन राम का जी अपना हुआ। सभी को राम से मिलने और उनसे अपना मनोभाव कहने का अधिकार था। इसी कारण प्रभु राम सर्वजन के महापुरुष बने।
आज जब राजनीतिक षड्यंत्र के कारण राम का विरोध कुछ विधर्मियों द्वारा किया जाता है तब माता शबरी के भक्तों व उनकी संतानों को ऐसे विद्रोहियों को सबक सिखाने आगे आना होगा। वन वन बस्ती बस्ती घूमकर माता शबरी की भक्ति और प्रभु के उनके प्रति स्नेह व आदर को जन जन तक पहुचाना होगा। आज इस संबन्ध में दूरी आने के कारण सुदूर वन्य क्षेत्र में बसे हमारे भील व जनजाति समाज को भ्रमित करके हिन्दू समाज के विरुद्ध खड़ा करने का षड्यंत्र किया जा रहा है इसे समस्त जनजाति व हिन्दू समाज को जानकर इन षडयंत्रो को समाप्त करने की दिशा में हिन्दू संगठनों का सहयोग करना चाहिए। गांव गांव बस्ती बस्ती रामकथा के माध्यम से जो अविरल धर्म गंगा बह रही है उसे हर ग्राम तक पहुचाना होगा खासकर उन बस्तियों तक जो धर्मान्तरण के षड्यंत्र का शिकार हो रही है।
प्रभु श्री राम के पिता के वचन जानकर एक क्षण में बिना विलंब किए दुनिया का समस्त वैभव संसाधन राजपद त्याग के कारण ही समाज उन्हें अपना महाराज स्वीकार कर चुकी थी। समस्त जातियों मानवों से प्रेम अपनत्व के कारण समस्त भूमण्डल उन्हें देव के रूप में पूजने लगा। हमें यह भी जानना होगा कि माता शबरी के जैसा भक्ति भाव प्रतीक्षा का धैर्य आज किसी भक्त में नहीं मिलता। यदि हम माता शबरी से उनकी भक्ति का ही आशीर्वाद लें तो आज इस युग में भी प्रभु हमें किसी न किसी रूप में दर्शन देने अवश्य आएंगे। इसलिए यह मान्यता है कि आज शबरी जयंती के दिन जो लोग शबरी माता की पूजा अर्चना कर उनका आशीर्वाद लेते हैं उन पर प्रभु श्री राम की विशेष कृपा होती है।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश