गीत/नवगीत

कितने लाक्षागृह राहों में

कितने लाक्षागृह राहों में
कितने धमकाते दुर्योधन
कितने योजन असमंजस है
कितने पीड़ा के गोवर्धन
कर्मवीर बनना भी अब तो
दुनिया मे आसान नही है
कामचोर जग घेरे मिलते
मेहनती को सम्मान नही है
व्यंग वार करते है घातक
घायल मेहनतकश की देही
पग पग पर अपमानित हो ज्यो
अग्नि परीक्षा पर वैदेही
बंद करो केशव अब मुरली
चलो उठा लो चक्र सुदर्शन
कितने लाक्षागृह राहों में
कितने धमकाते दुर्योधन
कितनी सुरसा राहों में है
कई कालनेमि पथ में
और मुखौटे डाले रावण
घूम रहे स्वर्णिम रथ में
शिशुपालो पर रोक नही है
दुश्शासन स्वच्छंद मिले
और सभा मे उल्लासित से
शकुनि के छल छंद मिले
नाग कालिया फन फैलाये
केशव कर दो उसका मर्दन
कितने लाक्षागृह राहों में
कितने धमकाते दुर्योधन
— मनोज डागा राजस्थानी

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.