धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

संसार का क्या महत्व है ?

आत्मा के भव भ्रमण का संसार है । अगर हमने मनुष्य भव प्राप्त किया है और इसका अच्छे से अच्छे में नियोजित किया है तो हम कम से कम भव में मोक्ष को प्राप्त कर सकते है । जीवन एक बड़ी फैक्ट्री है जिसका मालिक स्वयं इंसान हैं । अतः यह  इंसान पर निर्भरकरता है कि वह अपना जीवन कैसे आदर्श बनाएं। हम

अपना जीवन सभी जीते हैं पर कैसे जिएं इस कलात्मक तकनीक को जानने वाले बिरले व्यक्ति ही होते हैं । सरस, सुंदर, शान्त, शालीन, शिष्ट और सिलसिलेवार पवित्र जीवन जिया जाए यह महत्वपूर्ण हैं । जब तक हम जिएं जिंदादिली के साथ जिएं। ज्योतिर्मय अंगारे कीतरह जिएं न कि निस्तेज राख की तरह । मौत निश्चित है और कोई नहीं जानता कि कहां कब और कैसे आएगी,  हम अकेले आए हैं । साथ में कुछ नहीं लाए हैं ।वैसे ही जब हम जाते हैं तो अच्छे या बुरे कर्म के अलावा कुछ साथ नहीं ले जा सकते हैं। इसीलिए  हम अपनेजीवन काल में कुछ ऐसा अच्छा कार्य करके जाए कि सब हमें याद करें । ना हम कुछ साथ में लेकर आते हैं व ना ही कुछ साथ में लेजाते हैं।ऐसी स्थिति में तो हम व्यर्थ ही में अपनेपन के गीतों को गुनगुनाते है ।

अपने जीवन के हर पल को सार्थक बनाना ही तो इस जीवन का सार है । कुछ करके जीता नहीं ओरों का मन तो फिर हमारा यहां आनाही बेकार है। इतिहास गवाह है- बाहुबली को भी नही मिला था केवलज्ञान । जब तक था उसमें अभिमान ।विनय ही है एकमात्र हथियार। जो अभिमान पर करता वार ।ज्ञान के साथ विनय ही है स्वर्णिम उपहार । तभी खुल सकते सफलता के द्वार । संसार से भी हो सकते हैहम पार । मनुष्य के अनेक गुणों में सज्जनता का अपना एक महत्व है ।प्राय: हम देखते हैं कि हमारे साथ जो व्यक्ति अच्छा व्यवहारकरते हैं ।हम उनके साथ अच्छा और बुरा व्यवहार करने वालों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं ।

परंतु सज्जन व्यक्ति सभी के साथ एक जैसा अच्छा व्यवहार करते हैं। सज्जन व्यक्तियों में कोई लाग-लपेट या दुराव-छिपाव नहीं होताहै । संसार में लोगों के भिन्न-भिन्न स्वभाव होते हैं।कुछ के स्वभाव जटिल और कुछ के सरल होते हैं। मन के मनन के अनुसार कर्म करनेवालों के स्वभाव में सरलता होती है । सरल स्वभाव वाले व्यक्ति में मृदुलता और सौहार्द होता है ।उनमें किसी के प्रति कोई राग-द्वेष नहींहोता।ये लोग जहां भी जाते हैं अपना अच्छा प्रभाव छोड़ते हैं । अतः सज्जन व्यक्ति मन,वचन और कर्म से एक ही विचार से कार्य के प्रतिसजग रहते हैं। उसकी नींव सज्जनता पर ही टिकी होती है। हम अपनी शालीनता न खोएँ ।

कदाचित् किसी ने हमारा नुक़सान किया । हमारे लाभ में कही बाधा पहुँचाई, निंदा की, विरुद्ध कुछ कहा, अपमान किया,कहना नहीमाना व इच्छा के विरुद्ध आचरण बस ऐसे कारणों से हमें आवेश आ जाता है और  हम अविचारणीय विचार करते है । हम अभाषणीयबोलते है अकरणीय करते हैं और अपनी शालीनता खोते हैं, क्यों ???? विकसित होते हैं. व्यवहार चाहे वाणीगत हो या कर्मगत अथवाचेष्टागत सभी में संयम-सदाचार-सौम्यता शालीनता-सज्जनता की छाप होनी चाहिए । स्वयं के जीवन को अनुशासित ढंग से जीना वहीऔरों के मान-म्मान व शिष्टाचार का ध्यान रखना शालीनता हैं । शक्‍ल से खूबसूरत लोग दिल से भी खूबसूरत हों ऐसा जरूरी नहीं है ।आत्‍मा की सुंदरता पाने के लिए तो व्यक्ति में गुणों का होना जरूरी है ।दिखने में बुरा होते हुए भी अगर कोई गुणवान और प्रतिभावान होतो उसे कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता है ।क्योंकि जीवन की इस लंबी दौड़ में साँझ की तरह ढलते रूप की नहीं बल्कि सूरज कीतरह अँधेरे में उजालों को रोशन करने वाले गुणों की कद्र होती है ।ऐसे कई उदाहरण हैं जो बाहरी खूबसूरती के पैमाने को व भिन्न – भिन्नपरि‍स्‍थि‍ति‍यों के अनुसार बदलते रहतें हैं । अतः दुनि‍या में भीतर की खूबसूरती का एक ही पैमाना है और वह है आत्मा से पवित्र और सुंदरहोना । परिवार वाले स्तब्ध खड़े थे ,जीवित अवस्था में जिसका सौंदर्य अद्भुत था। जिसे अपने सौंदर्य पर नाज था, अहंकार था।तरह-तरह के प्रसाधानों से अपने शरीर को सजाता था।  आज शांत हो कर कहीं खो गया।  चिन्तन चला कि जिस सौंदर्य पर नाज (था) है वह शरीर अशुचि पदार्थों तो से भरा है। इस शरीर को एक न एक दिन छोड़ना ही पड़ेगा। जन्म,मरण,जरा ,रोग ,शोक, दुख  इस संसारका नियम है ,इसलिए इस असार संसार में रहकर कैसे सुखी रह सकते हैं। हमें  मान माया लोभ को छोड़ना ही होगा। मनुष्य का जन्मइसीलिए हुआ है कि वह ऐसे अच्छे कर्म करें कि दुनिया याद रखें। और  वह कर्मों की निर्जरा त्याग तपस्या के द्वारा जरूर करें क्योंकियही उसके साथ जाने वाला है।

— प्रदीप छाजेड़

प्रदीप छाजेड़

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