हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – मोती सबको चाहिए

मोती सबको चाहिए,बिना हुए निधि पैठ।
करे प्रतीक्षा मूढ़ नर, रहा किनारे बैठ।।

मेरे उपर्युक्त दोहे के प्रथम चरण के अनुसार इस असार संसार में सामान्य -विशेष,गर्दभ या मेष,नर या नरेश,खल्वाट या केशेश :ऐसा कोई भी शेष नहीं; जिसे मोती पाने की आकांक्षा न हो। किंतु मोती प्राप्त करने के लिए परिश्रम करने की भी आवश्यकता है।देह से स्वेद -स्रावण तो करना ही पड़ेगा; इस छोटी – सी बात से कोई अनभिज्ञ नहीं है।पर मोती सबको चाहिए ही।
आदमी नामक इस जीव के मन जैसी भी एक अदृश्य,अ-वश्य(जिस पर उसका वश भी नहीं),अबध्य,दुर्लभ्य जैसी चीज भी है;जो सर्वाधिक वेगवती,चटपटी,नट या नटी, देह के कण-कण में सटी हुई है कि उसके बिना उसका अस्तित्व ही नहीं है। ‘सबहिं नचावत राम गुसाईं’ की तरह वह किस- किस को नहीं नचा रही है। अब चाहे राजा हो या रंक, सदेह हो या अनंग,सजीव हो या संग (पाहनवत) मन सबका ही मचलता है।स्वतः स्फूर्त करंट से चलता है, स्पंदित होता है।इसलिए वह सर्व अभिनंदित होता है, वंदित होता है। कभी विषादग्रस्त कभी आनंदित होता है। पल में माशा पल में तोला, कितना चंचल कितना भोला! न आयत न चौकोर न गोला, चार निलय अलिंद से बना अमोला।इस मन की माया ही अपार है। आदमी इस मन के कारण ही तो बेबस, लाचार है।इसके अंतर में प्रति क्षण चढ़ाव है उतार है।बिना मन के भी तो नहीं मानव का निस्तार है।निर्मम भी बहुत कोई बहुत ही उदार है।पर मोती तो सबको ही चाहिए। कहिए कैसा ये विचार है?

देखा! कितना वृहद सागर का विस्तार है?और तू किनारे पर पड़ा ,खड़ा-खड़ा सोच रहा है कि सागर के मोती कैसे हाथ लगें! कभी आता उसे बोध हीनता का, कभी अपनी अकर्मण्यता की दीनता का,कभी दिख जाता है किसी गोताखोर से छीनता-सा। मोती चाहिए तो सागर के किनारे खड़े होने से काम नहीं चलने वाला।उसे अनिवार्यतः सागर की तलहटी में उतरना ही पड़ेगा। वहाँ विद्यमान सीपी, शंख, घोंघों में मोती खोजना पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि मोती तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हों और कहें कि आओ हमें चुन लो। अपने सपनों के गलीचे बुन लो।परन्तु मेरी भी आवाज सुन लो ,पाकर भी मोती , ये शक्ल क्यों बनाता है रोती-रोती? शायद कुछ लोगों की नियति ही है बड़ी खोटी, जो पाकर भी सुघड़ मोती ; रोयी – रोयी – सी होती।जागती हुई भी लगे सोती की सोती!

बहुत अच्छा ! कि पा गया तू मोती।बनाए रखनी है इसकी चमक औऱ ज्योति।शीतलता औऱ सु -शांति का प्रतीक है तेरा मोती।लगा कर सागर में गोता ,बन गया न तू अब गोती! मन में शांति रख और दान कर शीतलता। तभी तो स्वेद का श्रम आदमी को फलता।पाने के बाद भी जो दूसरों को दलता, वही किसी उजाले की तरह अस्ताचल में ढलता।बाद महत उपलब्धि के मानवता को छलता, बहुत दिन उसका सितारा नभ में नहीं चमकता! यों तो हर भौतिकता का अस्तित्व सदा नहीं चलता।फिर भी संतोष देती है उसके श्रम की सफलता।

इसलिए हे मानव ! सुपथ पर अहर्निश चल। ऐ नश्वर मुक्ताकामी!मुक्ताधारी!! चलता रह! चलता रह!! मोती-से नर- जीवन को मत विफलता कह।मृत देहवत प्रवाह में मत बह। अपनी एक नई धारा का निर्माण कर।चीर कर प्रवाह को नवीन पथ वर। मेष या गर्दभ वत जीवन न बिता। लुटलुटी लगा कर रेत में धूल मत उड़ा।लगा छलाँग हिमांचल या सतपुड़ा।कभी गंगा में नहाने से गधे गाय होते हुए नहीं देखे न सुने हैं। और तूने सोने के महलों में मिथ्या सपने बुने हैं!लगता है तेरे ये काष्ठ – पलंग सड़े-घुने हैं।तेरे दंभ भरे झूठे झुनझुने हैं।तू ही खिलाड़ी तूने ही तो चुने हैं।

—  डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’ 

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040