कविता

हे परशुराम जी

हे जम्दग्नि रेणुका के लाल
भगवान विष्णु के छठे अवतार
धीर वीर अति क्रोधी,शूरवीर गौ भक्त संत प्रवर
भक्ति और शक्ति के प्रतीक भृगुकुल नंदन,
शिव शिष्य, शास्त्र-शस्त्र पारंगत,
परम कृपालु, महामुनि, भगवान श्री परशुराम जी
मुझ अबोध अज्ञानी को आपसे थोड़ी शिकायत है
आप इतनी गहरी तपस्या में लीन हो
कि धरती पर मची चीख पुकार आपको सुनाई नहीं देती
रुस यूक्रेन युद्ध में मौत पर भी
आज आपको तनिक भी क्रोध नहीं आता
जाति धर्म के नाम पर संसार में चल रहा बेशर्म तांडव भी
आज आपको विचलित तक नहीं करता
अनीति अनाचार अत्याचार पर आपका मौन
हमें तो बिल्कुल भी समझ में नहीं आता
हे शिवभक्त! आपका ये अंदाज
आज हमें बिल्कुल भी नहीं सुहाता।
एक शिव धनुष टूटा था, तब आप क्रोध में जलने लगे थे,
दोषी की हत्या को मचलने लगे थे
अपराधी को मृत्यु दंड देने को बेचैन दिखे थे
लक्ष्मण की चुहल को भी आपने दिल पर ले लिया था
रामजी को भी आपने धमका लिया था।
फिर आज  क्यों मुंह फेरे हो?
क्या राम को भूल गए हो या
अब शिव भक्त बूढ़ा और कमजोर हो गया है।
यदि ऐसा नहीं है तो अब उठो,
अपना परशु उठाओ, नेत्रों में ज्वाला धधकाओ
एक बार फिर धरती पर दौड़ते हुए आओ
अपनी साधना को क्षणिक विश्राम देकर
अब फिर से अपना कर्तव्य निभाने आ जाओ।
अन्याय, अत्याचार, व्यभिचार के दोषियों का नाश करो
न्याय करो, अपराधी को दंड दो
सर्वनाश करो या जो भी उचित लगे कदम उठाओ।
मगर अब मौन साधना से बाहर आ जाओ
शिव और विष्णु अवतारी का नाम
अब और न धूमिल हो
कुछ ऐसा तो इंतजाम करो,
मेरी शिकायत पर भी तनिक करो
अपने नाम का प्रभाव दिखलाओ
फिर वापस जाकर अपनी साधना में लीन हो जाओ
हमारा नमन स्वीकार कर
हमें भी अपना आशीर्वाद देते जाओ,
मेरी शिकायतों का पटाक्षेप कर जाओ।
भगवान परशुराम जी अपने क्रोध से
एक बार फिर दुनिया को परिचित कराओ।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921