परशुराम
परशुराम
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हे विप्र शिरोमणि परशुराम,तुम परशु लिए फिर आजाओ ।
धरती की व्यथा भार हरने प्रभु परशुराम तुम आजाओ ।
जमदग्नि रेणुका सुत प्यारे भृगुवंशी जटा जूट धारी ।
अद्भुत अतुल्य था तेजपुंज ,रिपुओं के थे जो संघारी ।
ध्यानावस्था में पूज्य पिता का कार्तवीर्य ने सिर काटा ।
तब सारे क्षत्रिय कुल के शव से वसुधा काआँचल पाटा।
बस उसी तरह भूमण्डल से दुष्टों का फिर संघार करो ।
धरती की व्यथा मिटाने को हे सिंह वीर जग में उतरो ।
धरतीकी——–
छठवें अवतार विष्णु का तुम,त्रेता युग के हे अवतारी ।
फरसा था शस्त्र मिला शिव से,त्रिपुरारी के आज्ञाकारी ।
मिथ्याचारी बढ गये यहां,अन्याय पसरता जाता है।
भारत भूमण्डल पर दिन-दिन अंधियारा बढ़ता जाता है ।
जैसे क्षत्रिय संघारे थे, मनुज़ादो को संघारो अब ।
दुष्टों का सकल नाश करके, मानवता यहां पसारो अब ।
धरती को रम्य बनाने फिर हे भृगु कुल गौरव आजाओ ।
धरती की——
आरक्षण की तलवारों ने ,कितने प्रबुद्ध को मार दिया।
कितने लाचार गरीबों को ,दहशत देकर संघार दिया ।
सीता न यहां सुरक्षित अब,रावण निर्द्वन्द विचरते हैं ।
अन्यायी अत्याचारी सब,वहशत फैलाया करते हैं।
हे भृगुवंशी प्रभु राम सहित आओ आकर उद्धार करो।
फिर से त्रेता युग रामराज्य आए ऐसा उपचार करो ।
शत नमन तुम्हे मन मृदुल करे,सुन आर्त विनय प्रभु आजाओ। ।
देकर वरदान अभय का प्रभु,सौभाग्य सुरम्य गढ़ा जाओ ।
हे भृगुनन्दन आओ आकर धरती से पाप मिटा जाओ ।
धरती की व्यथा भार हरने ——–
हे विप्र शिरोमणि——-
©®मंजूषा श्रीवास्तव’मृदुल’✍🏻