लघुकथा

लघुकथा लेटर बॉक्स

 “यह क्या है दादू? रंग उखड़ गया- सा लगता है और जंग भी लग गई है।
“इसे लेटर बॉक्स कहते हैं। पहले यह बड़े काम का था। अब समय बदल गया है और  इसकी कोई पूछ नहीं।”
” फिर भी इसे दीवार पर लटका क्यों रखा है?”
“डाक विभाग की मजबूरी है दादू भाई।”
“डाक विभाग की मजबूरी!”
 “उपेक्षा की मजबूरी। चलो तुम्हारे पापा मम्मी के आने के पहले सामने के बगीचे से घूम आते हैं।”
दोनों के कदम बगीचे की ओर बढ़ गए।
— निर्मल कुमार दे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड nirmalkumardey07@gmail.com