कविता

लालसा

कितने भी पर फैला लो,
उड़ नहीं पाओगे,
जब तक,
अतिरिक्त पैसा,
अतिरिक्त पहचान,
अतिरिक्त शोहरत,
अतिरिक्त प्रतिष्ठा,
अतिरिक्त अतिरिक्त,
पाने की लालसा
नहीं छोड़ पाओगे!
अतिरिक्त पाने की लालसा
छोड़ दो,
जीवन एकदम,
हल्का और सरल हो जाएगा,
बड़ी सरलता से,
उड़ना संभव हो पाएगा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244