कविता

राम दर्शन की लालसा

राम जी को राम राम
राम जी को प्रणाम।
नमन करूँ अयोध्या भूमि को
जहां राम जी का जन्म स्थान ।
मंद मंद बहती सरयू की
धारा, निखरे ललित ललाम,
जन जन के आराध्य राम हैं,
और हमारे प्राण हैं राम।
बुद्धि हीन कुछ लोग धरा पर हैं
उनके लिए काल्पनिक राम।
खेल समय का आप देखिए
उन्हें भी आज प्रिय हैं राम।
कल तक जिनको रहे नकारते
आज उन्हीं के पड़े पायते।
रामभक्तों के संघर्षों का
जी भरकर अपमान किया।
उतने से जी नहीं भरा तब
दमन चक्र भी खूब चलाया,
आज बन रहा राम का मंदिर
तब भी उनको शर्म न आई।
मंदिर मंदिर दौड़ रहे अब
रटते राम-हनुमान हैं भाई।
आयें अयोध्या राम शरण में
उनका जैसे सौभाग्य नहीं है।
लगता है सिर्फ वोट की खातिर,
उनके लिये अभी भी हैं राम।
रोज रोज हैं भेष बदलते,
तिलक लगा जनेऊ धारते,
टोपी लगा इफ्तार हैं करते।
बेशर्मी ऐसी है उनकी,
अपना धर्म तक नहीं जानते,
अमर अजर हैं हमारे राम।
क्या वो अब भी नहीं समझते।
अच्छा है वो बेवकूफ रहें,
राम जी को परवाह नहीं है,
उन जैसों से चरण वंदना करवाना
शायद राम जी को भी मंजूर नहीं है।
पर पता चल गया हमें आज
मन में उनके क्या द्वंद्व चल रहा,
शर्मिंदगी का प्रतिफल है ये
राम जी का उन्हें आदेश नहीं हैं।
मचल रहे हैं वे सब सारे
जितने भी रामविरोधी हैं,
दर्शन के वो खुद ही लालयित हैं
चाहते राम की अनुमति हैं,
हे राम, कृपा करो उन मूढ़ों पर,
अपनी शरण में आने दो,
ले लो अपनी शरण में,
उनके  बंद चक्षु खुल जाने दो।
राम की महिमा जो नहीं जानते,
उनको भी समझ में आने दो,
हे दयानिधान, हे कृपानिधान
सबको रामनाम गुन गाने दो।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921