कविता

प्रेम

प्रेम को परिभाषित करें

ऐसी कोई भाषा नहीं
प्रेम को अभिव्यक्त करें
ऐसी कोई अभिव्यक्ति नहीं
प्रेम का वर्णन कर सके
ऐसी कोई लेखनी नहीं
प्रेम सत्य है ,प्रेम सुन्दर है
प्रेम ही है शिव …….!
सारी सृष्टि है प्रेम स्वरूप
वर्षा का धरा से
भौंरा का फूलों से
पंछी का उपवन से
नदी का समंदर से
है प्रेम का ही बंधन
प्रकृति के कण-कण में है
बस प्रेम का ही अंश
प्रेम मुखर है,प्रेम है मौन
नफ़रत में भी है
प्रेम का समागम
प्रेम लौकिक, प्रेम है अलौकिक
प्रेम ही है शाश्वत
प्रेम से है मानवता
प्रेम ही है जग संसार
प्रेम बिना नहीं है
इस धरती का कोई आधार!!
—  विभा कुमारी‌ “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P