सामाजिक

गलत आचरण को छोड़े 

आत्मा के साथ मन का बहुत ही गहरा रिश्ता है। आत्मा पर अच्छे-बुरे कृतकर्मों का सख्त पहरा है। जो प्रतिबिंबित हो रहा है जीवन दर्पण मेहर पल वो किसीदूसरे का नहीं हमारा ही अपना चेहरा है। जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है कि हम अपने गलत आचरण को छोड़े वसही आचरण को अपनाये। वही व्यक्ति सफल जीवन जी सकता है-जिसके जीवन मे पवित्रता है। जिसके जीवन मे उपयोगिता है। जोदूसरों के लिए कुछ अच्छा काम कर सकता है और जिसके जीवन मे गतिशीलता है। जैसे भावों से होगा भावित मन वैसे ही विचारों काहोगा हमारे मन में आगमन। तद्नुरुप होगा हमारा आचरण वही बनेगा हमारे व्यवहार का व्याकरण। अतरू शुभ-अशुभ विचारों की हम करेंनिगरानी ग़लत सोच छोड़ेगी हमारे ही आत्मा पर मलिन निशानी। स्वयं को क्यों हम अस्वच्छ बनायें द्य सुभावों से रहें आप्लावित सद्भावों सेही इसे सजायें। खुद के मन उपवन में खिलेंगे असीम तुष्टि और प्रसन्नता के सुमन द्य होगा यत्र-तत्र, सर्वत्र खुशियों का प्रसरण द्य सुनने कीआदत डाले क्योंकि ताने मारने वालों की कभी नहीं है। मुस्कुराने की आदत डालो क्योंकि रूलाने वालों की कभी नहीं है। गलत आचरणसे ऊपर उठने की आदत डालो क्योंकि टांग खींचने वालों की कभी नहीं है। प्रोत्साहित करने की आदत डालो क्योंकि हतोत्साहित करनेवालों को कमी नहीं है।

आचरण हमारे व्यवहार का दर्पण हैं। जिसमें नहीं सह्रदयता का समर्पण वो आचरण अप्रिय है। वैभव-संपन्नता का कोई मोल नहीं है। यदि हमारे व्यवहार में सदाशयता का मीठा घोल नहीं है। क्रोध,दंभ,लोभ,द्वेष आदि – ये सब हमें अपने और औरों की नज़रों में गिराते हैं। ऐसे लोग किसी के भी स्नेहादर का पात्र नहीं बन पाते हैं। जब कि हमारा मधुर व्यवहार, शालीन, सहयोगपूर्ण स्वभाव आदि सबके दिलको लुभाते हैं। जो हमे खुशियों से मालामाल कर देते हैं। बहुत आवश्यक है- महज़ उत्तम विचारों का ही नहीं उत्तम आचरण काव्याकरण हो उत्तुंग। वरना -हमारे व्यक्तित्व का ग्राफ़ हो जायेगा तंग। क्यों कि जिसका मन ग़लत विचारों के प्रदूषण से मैला है वो भीड़में भी अकेला है। व्यक्ति की नहीं उसकी विशेषताओं की गरिमा है। सद्गुणों से पूर्ण व्यक्ति के व्यक्तित्व की महिमा है। सुंदर स्वभाव बनाता है हमें सबका प्रिय, अपने निश्छल-सरल आचरण से ही हम सबके बनते हैं।

कई बार जीवन में ऐसे प्रसंग आते हैं- जब हम जानते-बूझते ग़लत कदम उठाते हैं। स्वार्थ पूर्त्ति या अहम्-लोभ वश अनुचित करने से पीछेनहीं हटते हैं। कर्मफल के ज्ञानाभाव में कई लोग तो कई कृतघ्न नृशंस कार्य कर लेते हैं। कुछ भी अमानवीय करने से वे पीछे नहीं हटतेहैं। पर यदि हम ह्रदय में झाँकें तो सही-ग़लत की छन्नी से अपने-आप को आँक सकेंगे। तो समझ में आयेगा- हम कितनी बड़ी भूल कररहे हैं। अपने-आप को ही छल रहे हैं। ग़लत कृत्य करते वक्त आत्मा स्वयं को झकझोरती है। ग़लत राह पर जाने से टोकती है। परलोभ-द्वेष का मद हमें गर्त में गिरा देता है। स्वच्छ-स्फटिक आत्मा पर मलिनता की चादर बिछा देता है। इस समय यदि हम अन्तर्चक्षुखोलें, गहराई से सोचें आदि तो शायद ग़लत राह की ओर जाते कदम रुक जायें। हम मन को सही दिशा की ओर ले जायें और हमकर्मबंध से बच जायें स्व से स्व को ठगने से बचाना है। आत्मा को अपने ही स्वभाव में लाने का दरिया बहाना है। हमें अपनी कमियों कोजानने के लिए, उसका एहसास करने के लिए अपने भीतर झांकना होगा। तब ही हमें अपनी गलतियां मालूम पड़ेगी पर मोह-माया वदूसरे की गल्तियों को निकालने में इतने मशगूल हो जाते हैं। दूसरे की योग्यता पर कटाक्ष करने लगते हैं कि अपनी दुर्बलताओं वहकमजोरीयों को देख नहीं पाते। हमारे लिए क्या उचित है, अनुचित है इस बात का ध्यान रखें तो गलत राह पर जानें से बच जाएंगे। औरजीवन पथ पर आगे बढ़कर अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

— प्रदीप छाजेड़

प्रदीप छाजेड़

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