कविता

जब प्यार यहां पर होता तो

परलोक सिधारा इश्क यहां, गुनाह धरा पर टिके हुए
नादान बहुत तुम लगते हो, अभी राह में रुके हुए

यहां तारे कितने टूटे हैं, तेज रोशनी थी जिनकी
अर्श पे फर्क कोई पड़ा, नाहक तुम हो झुके हुए

अब प्रीत यहां की रीत नही, फरेब है फलफूल रहा
अमराई वाले दरख्त सभी, हैं बाग के साथ बिके हुए

अब सावन आता जाता है, अब झूलों का दौर गया
इक पैंग लगा ली ख्वाबों में, जिस पर तुम हो मिटे हुए

जब प्यार यहां पर होता तो, न होती क़ज़ा सजा यहाँ
हर ‘राज’ के अखबार पढ़ो तुम, पन्ने जुर्म से पटे हुए

मौसम की कहानी है सारी, जो लिए रवानी फिरते हो
ऋतु आती जाती रहती हैं, सर्दी से तुम हो सिमटे हुए

राजकुमार तिवारी “राज”
बाराबंकी उ0 प्र0

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782