गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ख़ाक मेरी जिंदगी होने लगी।
तू नहीं तो शायरी होने लगी।।

भूल जाऊं तुझको चाहे दिल मेरा।
मौत से अब आशिकी होने लगी।।

याद आई आज तेरी शाम को।
आंखों में हल्की नमीं होने लगी।।

साथ चलने का किया वादा मगर।
साथ पाकर क्यूं बदी होने लगी।।

दोष दूं तुझको कि थी किस्मत मेरी।
अब तो खुद से दुश्मनी होने लगी।।

नींद उड़ जाती है तेरी याद में।
मयकशी क्यूं कर हंसी होने लगी।।

— प्रीती श्री वास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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