हास्य व्यंग्य

कठिन डगर (व्यंग्य)

गठबंधन के  इन  संवेदनशील दिनों  में देश के प्रति कुछ करने का जज्बा उनके रोम रोम में  समाहित हो चुका है।  वे पुलकित हैं। मन बावरा, फिर कुर्सी के लिए मचलने लगा है। इन दिनों उनका मन सात्विक प्रवृत्तियों से सराबोर है। विनम्र हैं ,दयालु हैं ,सहयोगी हैं होठों पर मुस्कान है । इन दिनों सबके लिए उनके दरवाजे खुले हुए, है,। वे इतने उत्साहित हैं कि दौड़ते हुए व्यक्ति को भी गले लगा ले। वे इन दिनों बेवजह मुस्कुराना चाहते हैं,  यह अलग बात है कि उनकी मुस्कान कुटिल है। बेशक वे गठबंधन  में  शामिल है और शामिल भी इसलिए हैं क्योंकि उनके शर्तें भी शामिल है। गठबंधन गोया एक राजनीतिक कुंभ हो गया। इस कुंभ में सारी पवित्र आत्मा , एकत्रित होकर इन दिनों कुर्सी रूपी परमात्मा की आराधना में रत है।

जानकार बताते हैं, राजनीतिक विश्लेषक लिख कर देने को तैयार हैं कि यह गठबंधन “पानी केरा बुदबुदा”के दर्शन पर आधारित है। गठबंधन में जो गले मिल रहे हैं वह आने वाले समय में अलग राह पकड़ लेंगे। गठबंधन के सामूहिक स्वर से एक ही सुर सुनाई दे रही है_” सिंहासन खाली करो कि ,हम अवसरवादी आते हैं “।  एक  आधुनिक दूरदर्शी समाजशास्त्री  ने गठबंधन की गजब की परिभाषा दिया-“गठबंधन एक ऐसी बारात है जिसमें सारे के सारे दूल्हे ही दुल्हे हैं बराती कोई नहीं” ।सबकी पहली तमन्ना है ,”सेहरा” मेरे ही सर बंधे । गठबंधन की धमाल और चर्चा से इन दिनों एक मुहावरा एकदम पर्फेक्ट नजर आ रहा है-मुख में राम बगल में छुरी। विरोधी एकता की जयगान करने वाले के आने वाले समय में ,कई हाथों में कैंचियां भी होंगी – जो उड़ने की कोशिश करेगा उसके पर कटेंगे।  विपक्षी एकता, प्रदर्शित करने वाला हर शख्स अपने हाथों से पत्थरबाजी कर रहा है और तबियत से मन भर पत्थर उछाल कर अपने कांच के घरों में छुप  रहा है । विपक्षी एकता अपनी ताकत बढ़ाने में जुटा हुआ है। जीवित लोकतंत्र के लिए ताकत भी चाहिए । पर यहां ताकत की परिभाषा बदली हुई है। वे भारत की बढ़ती ताकत से खुश नहीं है अपनी भूमिका में खुश हैं, इस जमावड़े में शामिल नेताओं को महंगाई बेरोजगारी का समाधान निकालने में नहीं अपने उल्लू सीधा करने में ही में प्रसन्नता मिल रही है। उनके उद्घोष में अवसरवादिता है। चुनाव नजदीक आते ही उनकी एकजुटता परवान चढ रही है। वे दांव-पेच सीख रहे हैं। राजनीतिक महत्वाकांक्षा बार-बार अंगड़ाई ले रही है। भानुमति का कुनबा खड़ा करने के लिए किसी के हाथ में ईट है किसी के हाथ में रोड़ा है। यह राजनीतिक चाहत ही मंच ऐसी है कि चाचा को भतीजे से भिड़ा दे। सबकी अपनी अपनी महत्वाकांक्षाए हैं। तर्क, तथ्य और समझ के सारे दरवाजे राज सिंहासन की तरफ खुले हुए हैं। सियासी जोड़-तोड़ के माहिर खिलाड़ी,नई राजनीतिक इबारत  लिखना चाहते हैं, देखना यह होगा कि वे इतिहास रचने की तमन्ना रखते हैं इसका नतीजा क्या होगा? सारे के सारे अपने-अपने घड़े लिए पनघट की तरफ चल पड़े हैं यह तो वक्त ही बताएगा कि कौन अपनी गगरी भर सकेगा। आखिर पनघट की डगर  भी तो काफी कठिन रही है।
— सतीश उपाध्याय

सतीश उपाध्याय

उम्र 62 वर्ष (2021 में) नवसाक्षर साहित्य माला ऋचा प्रकाशन दिल्ली द्वारा एवं नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा दो पुस्तकों का प्रकाशन कृष्णा उपाध्याय सेनानी कुटी वार्ड नं 10 मनेंद्रगढ़, कोरिया छत्तीसगढ़ मो. 93000-91563 ईमेल- satishupadhyay36@gmail.com