गीतिका
कहीं नही मन लगता है अब,टूटा क्यों सपना
सभी गैर लगते हैं अब क्यों, कोई नही अपना
मन में खोट भरा है जिनके,कैसे पहचाने
छल से,द्वेष,कपट से उनके,मुश्किल है बचना
जीवन की ये जंग कठिन है,धीरज मत खोना
हार मिलेगी,जीत मिलेगी,क्यों डरते इतना
खोना पाना जीवन क्रम है,कोन बदल पाया
ठोकर से कुछ सीख मिली है,यही ध्यान रखना
समय बड़ा बलवान बदल दे,पल में जीवन को
अच्छा मिलने पर खुश होना,नही घमंड़ करना
जिनके हाथों में पत्थर घर,उनका शीशे का
कींचड़ में दलदल में अपना,पैर नही धरना
पंख तेरे कमजोर तो क्या,उड़ना तो होगा
धीरे धीरे कर प्रयास तू,हिम्मत से उड़ना
— शालिनी शर्मा