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मिलने से डरता हूं

तुम्हारे लिए मेरे मन में प्यार दुलार सम्मान पवित्रताऔर अपनापन भी हैफिर भी तुमसे मिलने से डरता हूं,तुमसे नहीं तुम्हारी निश्तेज आंखों से डरता हूंतुम्हारे चेहरे पर छाई मायूसी से डरता हूं ,तुम्हारे मौन से डरता हूं।तुम्हारे मन में छिपे दर्द से डरता हूंतुम्हारे मन के गुबार के बाहर आने से डरता हूं।मुझे पता है तुम्हारे मन की वो पीड़ाजिसे तुम बाहर लाना नहीं चाहतीशायद अपने आंसू हमें दिखाना नहीं चाहती हो,या अपने मजबूत हौसले हमें ही नहींसारी दुनिया को दिखाना चाहती हो,या मेरे आंसुओं की कल्पना भर सेतुम जहर का हर घूंट खुद पीकर भीबहुत खुश रहना और दिखना चाहती हो,अथवा रिश्ते की मर्यादा कोऊंचाइयों पर ले जाना चाहती हो।जो भी है, हमसे सच रोज छिपाना चाहती होहमको टूटने बिखरने से बचाना चाहती होछोटी होकर भी बड़ी बनना चाहती हो।मुझे पता है मेरे हर सवाल से बचना चाहती होशायद अंधेरे में रखकर हमेंखुश देखना चाहती हो,पर शायद मेरे मन की पीड़ा कोसमझ नहीं रही हो तुम,इसलिए तुम्हारे सामने आने भर से ही नहींतुमसे मिलने से भी डरता हूं,तुम समझती हो इसी में मेरी खुशी हैतो तुम्हारे विश्वास का खून मैं खुद नहीं करना चाहता हूंइसलिए तुमसे बहुत दूर रहता हूंतुमसे मिलने में डर लगता हैबस! इसी भ्रम के सहारे तुम्हारी खुशियों के लिए दुआएं करता हूं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921