कविता

जय शिव शंकर

जय शिव शंकर भोले भंडारी
करते हो नन्दी के तुम सवारी
भूत प्रेत बना तेरे ही      साथी
कहलाते हो गौरा माँ के तुँ पति

हाथ डम डम डमरू है   बाजै
मस्तक पे चन्द्रमा है    बिराजै
गले नागों की शोभत है   माला
मॉ गंगे की तुम पे धरा  सॅभाला

भाँग धतूरा तुमको है बहुत भाये
कैलाश पर्वत पे हो घर तूँ बसाये
हिमालय पर्वत पे करता है वास
जग वाले को दिया ज्ञान प्रकाश

हलाहल विष था तुमको ही पीना
नीलकंठ था तुमको था कहलाना
बेलपत्र तुमको है अति ही प्यारा
जग वाले का     भोला है सहारा

बाघम्बर  छाल की तेरा पहरावा
मृगछाला पे धुनी तेरा     रचावा
देवो के तुम देव         देवादिदेवा
स्वीकार करो बाबा मम।     सेवा

गणपत कार्तिक दोनों तेरा दुलारा
त्रिभुवन के स्वामी सबका रखवारा
जय जय जय है भोले    अर्न्तयामी
इस त्रिभुवन के तुम ही हो   स्वामी

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088