स्वास्थ्य

आइए स्तनपान कराएं और काम करें, काम करें!

यही गर्मियों के उमस से भरे दिन थे। बरसात के बाद उमस से हर कोई परेशान था। इतने में बिजली भी चली गई। हॉस्पिटल का जनरेटर कई दिनों से खराब था। इमरजेंसी में बैठे हम सब सब लोगो की तरह पुराने अखबार और फाइल का फंखा बना कर झूलने लगे।

रविवार का दिन था। गर्मियों के दिन थे। कुछ दिन पहले के बरसात के बाद उमस और बढ़ गई थी और इससे हर कोई परेशान था। मै उस वक़्त ज़िले के सरकारी हॉस्पिटल में इमरजेंसी मेडिकल अफसर की इमरजेंसी ड्यूटी कर रहा था। इतने में बिजली भी चली गई। हॉस्पिटल का जनरेटर कई दिनों से खराब था। इमरजेंसी में बैठे हम सब सब पुराने अखबार और फाइल का फंखा बना कर झूलने लगे। इतने में इमरजेंसी के कक्ष में एक महिला बदहवास सी हालत में दो बच्चो के साथ आई। दरअसल रविवार के दिन एक ही डॉक्टर पुरे हॉस्पिटल में तैनात होता है इसलिए ओपीडी के मरीज़ भी इमरजेंसी में आते थे। एक 3 से 4 महीने का बच्चा उसने गोद में उठाया हुआ था और दूसरा यही कोई दो से तीन साल का बेहद कमज़ोर दिखने वाला बच्चा जो उससे चिपक चिपक कर चल रहा था। वह हाफ्ते हुए बोली, ‘ डॉक्टर साहिब, ‘ बेटे को दस्त लगे है, देखिये तो इसे, ‘ उसने गोद में उठाये बच्चे को मेज पर ही लिटा दिया।

मैंने उसकी जांच की और कुछ प्रश्न पूछ कर दवाई लिखने ही वाला था की बच्चा जोर से रो पड़ा। मैंने देखा उसकी माँ ने एक लिफाफे से दूध की बोतल निकाली और अपने हाथ की दो उंगलियां दबा कर निप्पल की जांच करने लगी कि उसका छेद दरुस्त है या नहीं। बच्चे को उसने गोद में लिया और उसे दूध पिलाने को हुई कि मैंने उसे टोकते हुए कहा की आप अपने बच्चे को अपना दूध क्यों नहीं पिलाती?

‘ न डॉक्टर साहिब, हम ने अपने इन दोनों बच्चो को शुरू से ही बोतल से ही दूध पिलाया है। कहते है कि अपना दूध पिलाने से औरत का शरीर ख़राब हो जाता है और वह अपना शारीरिक आकर्षण खो देती है और फिर उसका आदमी दूसरी औरत कर लेता है, ‘ उसने कहा।


‘ अरे यह किसने कहा ? ‘ मैंने हैरान होकर पुछा, तो उसने कहा कि हमारे मोहल्ले कि कई औरते कहती है।

मैंने अपना माथा पीट लिया। कैसे लोग है यह और इनकी सोच कैसी है? इनको अपनी शारीर के आकर्षण की फ़िक्र पड़ी है और अपने बच्चो के पोषण की नहीं!

मैंने उससे माँ के दूध के लाभ बताये कि कैसे माँ के दूध पीने से बच्चा मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है और उसे इन्फेक्शन भी नहीं होगा, न दस्त, न उलटी और नुमोनिआ जैसे अन्य रोग का भी खतरा कम होगा। मैंने यह भी बताया कि अपने बच्चो को अपना दूध पिलाने से उसका शरीर और सुन्दर व स्वस्थ होगा।

मैंने बड़े बेटे कि तरफ इशारा करते हुए जब उससे कहा कि देखो यह कितना कमज़ोर है। अगर इसे अपना दूध पिलाया होता तो यह इतना कमज़ोर न होता।

‘ अब छोटे बच्चे को तो कम से कम अपना दूध पिलाना, ‘ मैंने उसे समझाया।

‘ पर अब मुझे दूध नहीं आएगा,’ वह शंकित हो कर बोली।

‘ घबराओ नहीं, मै यह दवाई लिख रहा हूँ, इससे तुम्हारे स्तनों में दूध आने लगे गा, ‘ और उसे दवाई कि पर्ची थमा दी। उसको बच्चे को सही ढंग से ढूढ़ पिलाने के बारे में बताया, दस्त के लिए ओआरएस के दो पैकेट दिए और उस माँ को तसली दे कर भेज दिया।

उसके जाने के बाद, मैं सोचने लगा कि ऐसी कितनी ही महिलाएं होगी जो अपने बच्चो को अपना दूध नहीं पिलाती, तभी तो बच्चो में कुपोषण होता है और वह जल्दी जल्दी बीमार होते है।

माँ का दूध अपने बच्चे के लिए सम्पूर्ण आहार है। जहाँ पहले 6 महीने के लिए बच्चे को सिर्फ माँ का दूध पिलाना चाहिए, वही जब वह 6 महीने का हो जाये तो उसे अपने दूध के साथ दाल चावल, खिचड़ी, दलिया और सब्ज़ी थोड़ी थोड़ी मात्रा में शुरू कर देनी चाहिए।

हर साल विश्व भर में 1 से 7 अगस्त के बीच वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग सप्ताह मनाया जाता है। इसे मनाने का मकसद महिलाओं को ब्रेस्टफीडिंग के लिए प्रोत्साहित करना, साथ ही इससे जच्चा व बच्चा दोनों को होने वाले स्वास्थ्य लाभ के प्रति जागरूक करना है।

स्तनपान को प्रोत्साहित करने के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष ने वर्ल्ड एलायंस फॉर ब्रेस्टफीडिंग एक्शन की स्थापना की जिससे 1992 से विश्व स्तनपान सप्ताह 170 देशों में मनाया जाता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, “इस वर्ष की थीम स्तनपान और काम पर केंद्रित है, जो स्तनपान का समर्थन करने वाले आवश्यक मातृत्व अधिकारों की वकालत करने का एक रणनीतिक अवसर प्रदान करती है – न्यूनतम 18 सप्ताह का मातृत्व अवकाश, आदर्श रूप से 6 महीने से अधिक, और कार्यस्थल इस बिंदु के बाद आवास. यह सुनिश्चित करने के लिए ये जरूरी मुद्दे हैं कि महिलाएं जब तक चाहें तब तक स्तनपान करा सकें। आधे अरब से अधिक कामकाजी महिलाओं को बुनियादी मातृत्व प्रावधान नहीं दिए जाते हैं; जब कई लोग काम पर वापस जाते हैं तो खुद को असमर्थित पाते हैं। इस वर्ष की थीम,”आइए स्तनपान कराएं और काम करें, काम करें!” इसी पर आधारित है।

संसार की हर माता में स्तनपान के लिए हर महिला को जागरूक करना है क्यूंकि स्तनपान हर माँ का अधिकार, हर बच्चे का उत्तम आहार है।

-डॉक्टर अश्विनी कुमार मल्होत्रा

डॉ. अश्वनी कुमार मल्होत्रा

मेरी आयु 66 वर्ष है । मैंने 1980 में रांची यूनीवर्सिटी से एमबीबीएस किया। एक साल की नौकरी के बाद मैंने कुछ निजी अस्पतालों में इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम किया। 1983 में मैंने पंजाब सिविल मेडिकल सर्विसेज में बतौर मेडिकल ऑफिसर ज्वाइन किया और 2012 में सीनियर मेडिकल ऑफिसर के पद से रिटायर हुआ। रिटायरमेंट के बाद मैनें लुधियाना के ओसवाल अस्पताल में और बाद में एक वृद्धाश्रम में काम किया। मैं विभिन्न प्रकाशनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी में लेख लिख रहा हूं, जैसे द इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदुस्तान टाइम्स, डेली पोस्ट, टाइम्स ऑफ इंडिया, वॉवन'स एरा ,अलाइव और दैनिक जागरण। मेरे अन्य शौक हैं पढ़ना, संगीत, पर्यटन और डाक टिकट तथा सिक्के और नोटों का संग्रह । अब मैं एक सेवानिवृत्त जीवन जी रहा हूं और लुधियाना में अपनी पत्नी के साथ रह रहा हूं। हमारी दो बेटियों की शादी हो चुकी है।