हास्य व्यंग्य

बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा

अपने देश में राजनीति भी उद्योग धंधों के जैसे अपार संभावनाओं से भरा हुआ एक व्यापार है । जिसको इस व्यापार की समझ है वह सफल व्यापारी है। और जिसको समझ नहीं है पिटा हुआ खिलाड़ी है और सफलता का राह देख रहा है । राजनीति कोई रॉकेट साइंस नहीं है। राजनीति को भी स्थापित और चमकाने के लिए वही मेहनत लगती है जो किसी भी उद्योग धंधे में लगती है । उतना ही पूंजी लगता है जितना उद्योग धंधों में लगता है। और किसी भी उद्योग धंधे में भी प्रोडक्ट को जनता के सामने अपने को लाइमलाइट में बनाए रखना पड़ता है राजनीति में भी यही करना पड़ता है। बस अंतर इतना है उद्योग धंधे में सामान रहता है और राजनीति में इंसान रहता है ।

जिस तरह कंपनियां बिना अच्छे बुरे की परवाह किए बस अपने सामान को बेचने पर ध्यान देती हैं। अपने नफा-नुकसान पर ध्यान देती हैं । उसी तरह राजनीति में भी बिना अच्छे बुरे की परवाह किए मुद्दा उठाते रहिए, मुद्दे बनाते रहिए । व्यापार हो या राजनीति यदि आपको यह कला आती है तो आपकी सफलता की गारंटी सौ परसेंट है। और अपना देश तो हमेशा मुद्दों से भरा ही रहता है कभी मुद्दों का अकाल नहीं रहता। अपने देश में बारिश का अकाल हो सकता है अनाज का अकाल हो सकता है लेकिन मुद्दों का अकाल कभी नहीं हो सकता । कभी हिंदू-मुस्लिम ,कभी मंदिर मस्जिद तो कभी सड़क तो राजस्थान कभी मणिपुर तो कभी बंगाल कभी मुद्दों की कोई कमी नहीं है। बस जहां से मन करे वहां से मुद्दे उठा लीजिए । राजनीति की कीजिए खूब कीजिए और अपना परचम लहराने की तैयारी कर लीजिए।

संसद से लेकर घर तक कहीं पर भी मुद्दा उठाइए याद रखिए आप को मुद्दा उठाना ही आपको लोगों की नजरों में बनाए रखेगा। लाइमलाइट में बनाए रखेगा। पहले के जमाने में लोग संसदों में मुद्दा उठाते थे और सड़कों पर उठाते थे । लेकिन आजकल नया जमाना है पहले की अपेक्षा हर चीज के लिए ऑप्शन ज्यादा है। और पहले इतना मेहनत भी नहीं करना है पहले सिर्फ संसद और सड़क ही प्रचार प्रसार के साधन है । अब तो आप सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया तक अपनी जुबानी गोली कहीं भी चला सकते हैं । याद रखिए बंदूक की गोली से भी ज्यादा जुबान की गोली कारगर है अगर इसे ढंग से इस्तेमाल किया जाए। इधर कुछ सालों से सभ्यता का कुछ ज्यादा ही विकास हो गया है अतः संसद में मुद्दे कम हाथ लात कुर्सी ज्यादा चलती है। इसलिए अपनी सुरक्षा भी स्वयं करनी है। आप मुद्दे उठाइए लेकिन आपको इतना ध्यान रहे कि आप के मुद्दे फुसफुसिया बम ना साबित हो जायें। जो फुसफुसा कर शांत हो जाए । मुद्दा ऐसा उठाइए प्रिंट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक आपके पीछे पड़ जाए।

आपकी खूब खबर रखी जाए आपके बारे में विपक्ष वाले चुनिंदा शब्दों से नवाजे और आपकी खूब बुराई करें। और निंदा से बिल्कुल मत डरिए आपने वो कहावत तो सुनी होगी जो डर गया वह मर गया, लेकिन –राजनीति में जो डर गया वह घर गया ,तो आपको बस मैदान में डटे रहना है। बस इस कहावत को याद रखिए ..बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा,, की तर्ज पर अपने आप को संतुष्ट करते रहिए । आप के बोल बच्चन ऐसे होने चाहिए की आपके ऊपर दो चार मुकदमे तो यूं ही लाद द़िए जाने चाहिए। ताकि आप अपने आपको बेचारा और प्रताड़ित भी दिखा सके । आपके विरोधी आपके पीछे-पीछे जागते सोते हुए आपके पीछे लगे रहे और सोचे और अपना माथा पीटे, अरे यह मुद्दा कैसे छूट गया हमसे? और अपने सलाहकारों को भरपेट लानत मलामत करें । तभी आप के मुद्दे की सार्थकता है ।
रोज एक नया मुद्दा खोजिए पहले के जमाने में विशेष उपलब्धियों किसी के नाम होती थी आज के जमाने में विवादित मुद्दे भी अलग फलां- फलां के नाम हो जाती हैं। और एक बार आप कोई विवादित मुद्दे के द्वारा फेमस हो गए आप की नैया पार लगनी तय है। फिर तो आपको जनता भी अच्छे से पहचान लेगी और राजनीति और बड़ी-बड़ी पार्टियां तो आपको जाने कौन-कौन सी उपाधियों से नवाज कर आप की राजनीति की खटारा गाड़ी को लग्जरी गाड़ी में बदल करवा देंगी और आप की राजनीति की दुकान धड़ल्ले से चल निकलेगी।

— रेखा शाह आरबी

रेखा शाह आरबी

बलिया (यूपी )