कहानी

चाह बने असली राह

रजिया एक प्रतिष्ठित पीर की बेटी थी।वह पूरे दिन मस्जिद दरगाह में रहते, लोगों की सेवा करते। रजिया को भी अपने साथ चलने की बात कहते लेकिन वह इन चीजों को ढकोसला मानते हुए जाने से इंकार कर देती।
अचानक एक दिन रजिया की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई, जिससे अब्बू के कहने पर वह दरगाह गई। वहीं उसकी नजर सूरज पर पड़ी।वह एक टक उसे निहारती ही रही ।सूरज पीर शाहब से आकर चद्दर चढ़ाने की विधि पूछ ही रहा था ,कि इतने में रजिया दौड़ कर आ बोली… क्या आप यहां पहली बार आए हैं ?
…जी।
उसके चेहरे की मासूमियत ,बोलने का हाव- भाव देख उसकी नजरें हटने का नाम ही नहीं ले रहा था, ‌लेकिश अब्बू के रहते हुए कुछ और पूछने में भी वह सक्षम नहीं थी।
रजिया अबअक्सर दरगाह आ जाती, वहां मानो उसकी नजरें सूरज को ही ढूंढती रहती।
लगभग सप्ताह- दर- सप्ताह बाद उसकी नजर सूरज पर पड़ी। अचानक उसे देख वह फूले न समाई और सब कुछ भूलकर उसके करीब जाकर बोली …-तुम तो ईद के चांद ही हो ,तुम्हें ढूंढते हुए आज मैं पन्द्रहवे दिन दरगाह आई, पर तुम तो दिखते ही नहीं। रजिया की यह बात सुन सूरज को बड़ा ही अजीब लगा ।चुप्पी साधे सब कुछ सुनता रहा।
उसकी बातों से प्रभावित होकर सूरज भी अब अक्सर दरगाह आने लगा, जिससे घंटो दोनों बैठ कर बातें करते । दोनों के बीच प्यार का एक सूत्र भी पनपने लगा ।यहां तक कि मजहबी पुराण, गीता आदि की बाते भी वह आसानी से ही कर लेते।
इतने में सूरज का तबादला किसी दूसरे शहर में हो गया ,लेकिन दोनों के बीच किसी तरह की दूरियों की कभी कोई गुंजाइश नहीं रही। अब पीर साहब को इस बात की हल्की -हल्की भनक महसूस हुई ,जिससे उन्होंने महीने के अंदर ही अपनी बेटी का निकाह अपने ही कौम के मशगूल नामक व्यक्ति से करा दिया। दोनों साथ रहने लगे।

वक्त बितता गया ।लगभग दो साल बीत गए ।अब हर कोई वारिस की मांग करने लगा। यहां तक कि पड़ोसी भी होरुता की मांग करने लगे। डॉक्टर के दिखाने पर रजिया की प्रशव का छोटा रहना वजह बता लंबे वक्त तक उसे दवा खाने की सलाह दी , लेकिन उसके बाद भी 100% ठीक होने की बात नहीं कही, जिससे मशगूल को बहुत दुख हुआ ।वह डॉक्टर साहब की बात को बिल्कुल ही नकारात्मक रूप में लिया, जिससे दोनों के बीच कहा – सुनी भी होने लगी।
यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा था। मशगूल के अब्बू भी उसी का साथ देते ,जिससे रजिया को दुखी रहने लगी ।
एक दिन उदास मन से वह अपने अब्बू के घर आई। बेटी का उदास चेहरा देख अब्बू पूछ बैठे …-क्या बात है, रजिया तुम इतनी उदास क्यों हो ?
… अब्बू उन्हें बारिस चाहिए ,जो मैं पूरी तरह देने में सक्षम नहीं हूं ।
…क्या बोल रही हो? क्या मशगूल ने तुम्हारी डॉक्टर से जांच कराई थी।
… हां, डॉक्टर ने मुझे एक वर्ष तक दवा खाने की सलाह दी है, लेकिन फिर भी सब कुछ ठीक हो जाए यह कोई गारंटी नहीं !
अब्बू को यह सुन बहुत दुख हुआ ।अकेले माता-पिता दोनों का प्यार देने वाले अब्बू ने तुरंत मशगूल को फोन कर कहा…- मैं रजिया की पूरी तरह इलाज करवा स्वस्थ हो जाने पर आपके यहां भेज दूंगा । मशगूल ने भी इस बात को लेकर हामी भर दी।
रजिया का जांच कराने उसके पिता स्वयं ही अस्पताल ले गए ।वहां डॉक्टर के चेंबर में सूरज को देख रजिया के पैरों तले जमीन खिसक गया। वह दो पल तो मौन ही रह गई। सूरज को भी अतीत का सारा आईना उसकी नजरों के सामने आ गया ,किंतु अब्बू के साथ रहने के कारण दोनों चुप्पी साधे रहे ।इतने में रजिया खुद को रोक ना सकी, और बोली…-सर, क्या आप सूरज मिश्रा है?
… जी
(वह भी अनजाना वन)
…आपका नाम?
… रजिया लश्कर
… क्या दिक्कत है आपको? अब्बू और रजिया ने सब कुछ बताया।यह सुन सूरज को बहुत दुख हुआ।वर्तमान युग में ऐसा कुछ भी नहीं ,जो नहीं हो सकता। आप जरूर मां बनेगी।
सूरज ने लेडी नर्स को बुलाया और पिता को बाहर जाने की अनुमति दी ।
इतने में थोड़ी जांच के बाद सूरज नर्स को गर्म पानी लाने को कहा। इससे दोनों को ही अपने निजी जीवन के बारे में कुछ वक्त बातें करने का मौका मिला। बातों ही बातों में सूरज बोला …-उसके माता-पिता एक अच्छी लड़की की तलाश कर रहे है, रजिया यह सुनकर कहने लगी ।तुमने अभी तक शादी नहीं की!
…नहीं, पिछले वर्ष ही मेरी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी हुई।
इतने में रजिया बोली …क्या तुम्हें हमारी दोस्ती याद है ?
…हां ,पर तुम ही तो भूल गई निकाह करके,
… नहीं सूरज, भूली तो कभी नहीं…
… क्या करता है तुम्हारा पति?
… छोड़ो ,उसकी बात ।मैं तो अब उसके पास जाने से रही!
… ऐसा क्या हुआ तुम लोगों के बीच!
… सूरज वो एक ऐसा दरिंदा है ,जिसे पत्नी नहीं एक घर में काम करने के लिए बाई और बच्चा पैदा करने वाली मशीन चाहिए ।जिस दिन से उसे यह पता चला है कि मैं बच्चा नहीं पैदा कर पाऊंगी, वह मेरे साथ दरिंदगी की हर सीमा को पार कर चुका है।
… सचमुच…
. सूरज जांच कर बोला…- चिंता मत करो ,तुम्हें एक महीने के अंदर ही मैं प्रशव धारण करने लायक बना कर ही दम लूंगा।
… सच्ची
तुम आज से ठीक एक महीने बाद अपने पति के घर जाने की तैयारी करो। रजिया उदास मन से बोली…-
…नहीं सूरज…
मुझे नहीं पता तुम लोगों के बीच इतना क्या हुआ लेकिन एक दोस्त होने के नाते मैं तुम्हें यह कहना चाहूंगा…- कि बड़ी -बड़ी शहरों में छोटी- छोटी चिजे होती रहती है। इससे ना केवल दो लोगों की जिंदगीया जुड़ी रहती है बल्कि दो परिवारों की इज्जत भी। सूरज की ये बाते रजिया के दिल में घर कर जा रहा था। इतने में वह बोली…-काश ,तुम मेरे पति होते !
सूरज हंसते हुए बोला… तुम ही तो आंखिर मुझे छोड़कर पहले ही निकाह कर ली।
सूरज मैंने निकाह तो जरूर किया लेकिन मन- मस्तिष्क से हर वक्त में तुम्हारी छवि मशगूल में ढूंढती रही। सूरज चुपचाप भावुक चेहरे से सब कुछ सुनता रहा।फिर बोला …-वक्त निकल चुका है, अब क्या हो सकता है?
… सूरज वक्त तो निकल चुका है, पर तुम चाहो तो बहुत कुछ!
… वह मुस्कुराकर रह गया। इतने में गरम पानी लेकर कमरे में पहुंची। सूरज ने सुई देने की बात ज्यो ही कही , उसकी आंखें मानो सारा प्यार बयां कर रही थी। सूरज भी भावनाओं की चादर ओढ़े बड़ी मुश्किल से सुई लगा पिता को अंदर आने की अनुमति दी। सब कुछ सकारात्मक बताते हुए दवाइयों का पर्चा थमा उन्हें घर जाने की कहा।
अब रजिया बहुत खुश रहने लगी।उसे मानो सोने का खजाना मिल गया। उसकी खुशियां देख पीर साहब भी बहुत खुश रहने लगे ।
रजिया अब हर दिन सूरज से बातें करने लगे ।वह शरीर तथा मन- मस्तिष्क में होने वाली सारी हरकतों का भी बखान करती और अब दोनों में प्यार के कच्चे डोर के साथ समझदारी का चादर भी चढ चुका था, जिससे दोनों बात भी करते तो बड़ी ही समझदारी के साथ।
रजिया पन्द्रह दिनों बाद पुनः सूरज से जांच के लिए अकेले ही अस्पताल पहुंची। दोनों के चेहरे पर भावुकता, शर्म की ऐसी अनोखी चादर थी मानो सूरज और चंद्रमा का आंख … मिचोली!
दोनों एक-दूसरे से नजरें तक ना मिला पा रहे थे। सूरज ने कांपते हाथों से उसकी जांच की। इतने में रजिया बोली…- क्या अब मैं तुम्हारे लायक नहीं?
… सूरज बोला… ऐसा क्यों बोल रही हो, कहना क्या चाहती हो?
… सर, आप भली-भांति समझ रहे हैं, मेरे कहने का तात्पर्य क्या है।
… समझ तो रहा हूं, पर इंसान धोखा सिर्फ एक बार खाता है, यह सुन रजिया उदास मन से बोली…… विश्वास करो इस बार ऐसा कुछ नहीं होगा।
… यह कहना बहुत आसान है पर तुम अभी भी तो पीर साहब की ही बेटी हो, और मैं एक हिंदू खानदान का बेटा। लेकिन यह भी सही है कि मेरे फैसले पर किसी को आपत्ति नहीं होगी।…
… तुम पीर साहब की चिंता मत करो। एक बार वो मेरी जिंदगी खराब कर चुके हैं अब मैं उन्हें दूसरा मौका नहीं दूंगी।
इस विश्वास को देख सूरज बोला ……अच्छा चलो, हम दोनों को यदि मिलना नसीब में लिखा होगा, तो जरूर मिलेंगे ।लेकिन तुम जब अभी फ्री बैठी हो ,क्यों न तुम अपने पैरों पर खड़े होने के लायक बनो। कुछ कोर्स ही कर लेती हैं तो भविष्य में किसी के सामने हाथ फैलाना ना पड़ता।हमारे चेंबर के नीचे ही एक छोटा सा कंप्यूटर , स्कूल है,जिसे तुम ज्वाइन कर लो ,और छः महीने के बाद मैं तुम्हें अपने अस्पताल में ऑनलाइन नौकरी पर लगा दूंगा ।रजिया उनका आभार जताते हुए बोले … हमारे बारे में भी सोचना…
सूरज हंसकर बोला…- हां जरूर।
रजिया कंप्यूटर क्लास ज्वाइन कर ली। देखते ही देखते छः महीना बीत गए। दोनों में प्यार का सूत्र और भी गहरा हो गया।
अब जब भी अब्बू के सामने वह बैठती ……तो डॉक्टर की तारीफ करते नहीं थकती। पीर साहब भी उससे प्रभावित होने लगे। एक दिन बातों ही बातों में अब्बू बोले…-हां सचमुच, आजकल अपना छोड़ दूसरों की कौन सोचता है ।
अब्बू डॉक्टर साहब की तारीफ करते हुए बोले…… सचमुच ,सूरज बहुत ही अच्छा लड़का है।
इतने में रजिया बोली…… हां अब्बू ,सचमुच, बहुत ही अच्छा। मैंने तो आपसे यह बात बहुत ही पहले कहा था ,पर आपने मेरी एक न सुनी, और मेरा निकाह निकम्मे मशगूल से करा दिया।
पिता चौक कर बोले…- क्या?
… हां ,यह वही सूरज है, जिससे डरकर आपने मेरा निकाह…।
पिता का सिर शर्म से झुक गया। मन- ही -मन सोचने लगे। यदि मैं उस वक्त रजिया की बात माना होता तो आज उसकी जिंदगी…।
इतने में रजिया बोली…- क्या सोच रहे हैं अब्बू?
…नहीं, कुछ नहीं बेटा ।
अब्बू मैं आपकी बेटी हूं। मैं आपके रग- रग से वाकिफ हू। आप नहीं बोल रहे, फिर भी मैं सब कुछ समझ रही हूं।
रजिया अब अस्पताल में लोगों आनलाइन जांच का वक्त एवं विभाग बिताने लगी , जिससे उसे महीने के पैसे भी मिलने लगे।
अब रजिया सूरज को जितना प्यार करती, उससे कहीं अधिक उसकी इज्जत भी करने लगी।
अब्बू के हाथों में अपनी मेहनत की पहली कमाई देते हुए बोली …-यह लीजिए आपकी बेटी की मेहनताना।
अब्बू गले लगाते हुए मौन हो डबडबाई आंखों से बोले……यह तुम्हारी मेहनत और विश्वास का फल है। इतने में रजिया बोली…- अब्बू, इसका असली श्रेय तो डॉक्टर सूरज को जाता है, उनकी मेहनत और विश्वास के कारण ही आज मेरी जिंदगी इस मुकाम पर आ खड़ी है, और मैं भी आगे की जिंदगी उनके साथ ही बिताना चाहूंगी।
अब्बू सोच में पड़ गया। लेकिन बेटी की खुशी के लिए वह राजी हो गए । दोनों परिवारों के सामने उनका कोर्ट मैरिज करा दिया गया।और अब दोनों खुशी-खुशी रहने लगे ।कुछ ही दिनों में रजिया प्रसव भी धारण कर ली और एक नन्हा सा फूल भी खिल गया।
— डोली शाह

डोली शाह

1. नाम - श्रीमती डोली शाह 2. जन्मतिथि- 02 नवंबर 1982 संप्रति निवास स्थान -हैलाकंदी (असम के दक्षिणी छोर पर स्थित) वर्तमान में काव्य तथा लघु कथाएं लेखन में सक्रिय हू । 9. संपर्क सूत्र - निकट पी एच ई पोस्ट -सुल्तानी छोरा जिला -हैलाकंदी असम -788162 मोबाइल- 9395726158 10. ईमेल - shahdolly777@gmail.com