कविता

मेरे शिमला को किस की नज़र लग गई

पहाड़ों की रानी को यह क्या हो गया

पहले का वह स्वरूप कहाँ खो गया

देवदार के पेड़ जहां होते थे लाखों

वहां कंक्रीट का जंगल खड़ा हो गया

पहाड़ पर बना दिये बड़े बड़े मकान

सुरक्षित हैं या नहीं किसी ने नहीं रखा ध्यान

पेड़ो को उखाड़ दिया खोखली कर दी ज़मीन

नहीं संभले जब तब प्रकृति देने लगी अब ज्ञान

पहाड़ भी अब होने लगे निढाल

आदमी फिर भी चल रहा कटु चाल

इतनी छेड़छाड़ करदी उसने कुदरता से

नज़र क्यों नहीं आ रहा उसको सामने खड़ा काल

शिमला की खूबसूरती तो थी घने जंगल

न जाने कैसे अब होने लगा अमंगल

मेरे शिमला को किस की नज़र लग गई

जो होने लगा कुदरत और आदमी में दंगल

जहां सौ के लिए जगह थी बस गए हज़ार

प्रदूषण ज़्यादा हो गया गाड़ियों की भरमार

चो नाले भी कर लिए कब्जे में आदमी ने

फिर कहते हैं कुदरत कर रही है अत्याचार

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र