कविता

बहन मिल गई

एक विश्वसनीय प्रतीक्षा भरी उत्सुकताजब धरातल पर समाप्त हुईतो मन मयूर नाच उठा,खुशियों का जैसे सैलाब आ गयाआंखें नम हो गईं, मन भावुक हो गया।ये कैसा बंधन है जहां शब्द मौन हो जाते हैंमन के तार संदेश पहुंचाते हैं।अबूझ पहेली सा है ये संबंधजहां न कोई खून का रिश्तान जान पहचान का कोई सूत्रफिर भी अटूट बन संवर रहा हमारा ये रिश्ता।जहां नेह है, स्नेह है, शिकवा और शिकायतों संगविश्वास का भंडार भरा अधिकार भी।न कोई संकोच है न कोई भेद हीन ही अपने पराए का गुणा गणित भी।बस! है तो मात्र एक स्नेह बंधनजिसमें रचा बसा है उसका स्नेह प्यार दुलारऔर अपनेपन के विश्वास संग अधिकार जिसे बांधा है उसने राखी के धागों सेऔर संवारा है अपने लाड़ प्यार से।इस बंधन में बंधना भी सौभाग्य जैसा हैजिसमें पवित्र भाव और आत्मविश्वास केसिवा कुछ भी तो नहीं है।और अगर है तो पूर्व जन्म के रिश्तों की वोडोरजो शायद छूट गई थी कभीहम दोनों से या किसी एक सेऔर वो डोर जैसे आज फिर हमारे हाथ आ गई,रक्षा- बंधन का सूत्र बनकरऔर एक बार फिर हमें रिश्तों के बंधन में बांध गई,राखी के धागों में जकड़ गईहमारे रिश्तों को फिर से पहचान दे गई।बहन को एक बड़ा भाई और भाई को फिर एक बहन मिल गई।

*सुधीर श्रीवास्तव

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