पड़ जाता लेने का देना! (कविता)
बांस हूं, मैं हरा सोना हूं,
“बुद्धिमानों की लकड़ी” हूं,
लंबा-सीधा खड़ा रहता हूं,
कभी नहीं मैं थकता हूं।
तेज़ी से बढ़ता हूं मुझसे,
फर्नीचर भी बना सकते हैं,
टोकरियां, झूले, सजावटी चीजें,
अचार-मुरब्बे-शहद भी बनते हैं।
घर का निर्माण मुझसे होता,
छत के काम भी आता हूं,
ढेरों चीजें मुझसे बनतीं,
बिस्किट-रूप में भी मिलता हूं।
गाने-बजाने-नाचने से है,
मेरा जन्म-जन्म का नाता,
श्याम-बांसुरी बांस से बनती,
बम्बू डांस भी खूब सुहाता।
पानी पी-पी पनपता हूं पर,
सीने में मेरे तापित आग,
मेरे वन में आग लगे तो,
बच नहीं पाएं शेर और बाघ!
अपने मन में वैर-क्रोध की,
अग्नि भड़कने मत देना,
खुद जले, औरों को भी जलाए,
पड़ जाता लेने का देना!