लघुकथा

कथनी और करनी 

सुरमई संगीत से समां सुहाना हो गया था। जगह-जगह ‘वन्य जीव सप्ताह’ के उपलक्ष्य में बैनर, गुब्बारे, सजावट से जंगल में मंगल हो रहा था। जोर-शोर से नारेबाजी हो रही थी। 

जीव जंतु, वन्य प्राणी, वन-जंगल, विशाल पर्वत, प्रकृति संगोपन, सृष्टि सौंदर्यीकरण के संकल्प लिए जा रहे थे।

‘दया, क्षमा, करुणा, जीवदया प्रेम-भावना,

जिओ और जीने दो, हो मंगल शुभकामना।’

अचानक किसी गिलोय से जख्मी लहूलुहान कबूतर नीचे गिरा। 

शांति संदेश देते कबूतर की दुर्दशा देख, सबकी आंखों से झर झर आँसू बहने लगे।

“रे कृतघ्न मुखौटाधारी मानव, चेत जा। कथनी और करनी में इतना अंतर? 

अपनी नादानी की सजा तुझे मिलेगी जरूर।”

महामारी प्रकोप से बंद कमरे में बैठा मानव अपनी करनी पर पछता रहा था।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८