कहानी

लम्बी कहानी ‘रखैली’ – भाग 4

(3)

सज्जाद की हवेली

सारिका को अपने ख्यालो में भी ये उम्मीद नहीं थी कि स्यालकोट के पास महमूदाबाद कस्बे की हवेली में उसका स्वागत कुछ इस तरह से होगा।

एक गोरी चिट्टी तक़रीबन पचपन साला औरत जिसे सज्जाद अम्मी कहकर पुकार रहे थे उसने हवेली की दहलीज़ पर सारिका की जलते दीपक से सजी हुई थाली से आरती उतारी। उनके साथ कुछ जवां औरतें थी जिन्हे कुछ को सज्जाद भाभीजान और कुछ को आपा कह रहे थे। कुछ बच्चे भी सारिका को ख़ुशनिगाहो से देख रहे थे। उनमे से कुछ बच्चे सज्जाद से कह रहे थे मामीजान बहुत खुबसुरत है तो कुछ बच्चो ने कहा बड़ी प्यारी हैं चचीजान।दहलीज़ से मुख्य सहन तक फूल बिछे हुए थे जिनपे पाँव धर के सारिका हवेली के भीतर आई। कुछ औरतों ने उसके ऊपर फूल भी बरसाए।

सारिका का दिल अपने इस इस्तकबाल से फूला न समा रहा था। कुछ ही समय में सज्जाद की अम्मी बेगम नादिरा ने सभी औरतों और बच्चों का तआरुफ़ सारिका से करवाया।

सभी ने सारिका पर प्यार बरसाया उसे अपनी आँखों पे बिठाया।

सज्जाद के कुछ दोस्त आ गए थे। वो हवेली के बहार जाकर अपने उन बचपन के दोस्तों के साथ बिजी हो गए।

एक औरत जिसका नाम कहकशां था और जो सज्जाद की बड़ी बहन थी वो सारिका को हवेली दिखाने लगी। काफी बड़ी और आलिशान थी ये हवेली। कहकशां ने सारिका को बताया कि मुगलो के राज में ये  गाँव और इसके आसपास के बीस गाँवों की जमींदारी थी इस हवेली के पास।

अभी भी न जाने कितने एकड़ जमीन के मालिक है सज्जाद और उनके दो भाई। बाकी दो भाई तो कभी यहाँ रहकर तो कभी स्यालकोट से जमीं और अन्य कारोबार संभाल रहे हैं पर सज्जाद अपने मस्तमौला नेचर की वजह से  ज्यादातर इस्लामाबाद में रहते है। उन्हें इस धन – दौलत से ज्यादा मुहब्बत इंसानो से है और उन्हें लोगो की भलाई करने में मजा आता है। 

‘इंशाअल्लाह उनका भाई एक बड़ा जर्निलस्ट है।’ सज्जाद की तारीफ़ करते हुए कहकशां ने कहा तो सारिका को खुद पर ये सोच कर गर्व हो गया कि सज्जाद ने उसे अपना हमसफ़र बनाने का फैसला किया है।

‘सारिका सबसे पहले सज्जाद से इस्लामाबाद में मिली थी।’ उसने कहकशां को बताया।

‘ओह तो आप पहले भी पाकिस्तान आ चुकी हैं।’ कहकशां ने पूछा तो सारिका ने होठों पर मुस्कान लाकर कहा ‘हाँ आपा।’

‘मतलब तो आप अपनी ससुराल को पहले से जानती हैं।’ कहकशां ने कहा तो सारिका ने ह्या से आँखें नीची कर ली।

तभी उन्हें सहन में  सज्जाद की आवाज़ सुनाई दी।

सारिका ने आँखे उठाकर आवाज़ की जानिब देखा तो कहकशां हँसते हुए बोली ‘लो आ गए आपके मियां जी अपने दोस्तों से आपकी खूबसूरती का जिक्र करके।’

कहकशां की बात सुनकर सारिका की उठी हुई आँखे अबकी बार दोहरी लाज से झुक गई।

रात का डिनर एक बड़े से रसोईघर में तैयार किया जा रहा था।

खानसामे की मदद हवेली की औरतें कर रही थी। सज्जाद के बड़े भाई वाजिद ने कई तरह के खाने का बंदोबस्त करवाया था। सज्जाद के दूसरे भाई स्यालकोट में किसी बिजनेस की मसले की वजह से आ न   सके थे।

सज्जाद के और वाजिद के दोस्तों के आलावा गाँव और आसपास के गाँव के कई मशहूर लोग हवेली के बाहर आये हुए थे।

सारिका ने किचन में जाकर खाना बनाने में मदद करनी चाही तो कहकशां उसे ये कहते हुए किचेन से बाहर ले आई ‘अभी इस हवेली में तुम्हे कोई काम करने की जरुरत नहीं जब अपनी मियां के साथ इस्लमामाबद में रहना तो उनके लिए उनकी पसंद की डिशे बनाना।’

खाना खाने के बाद सभी लोगो ने सज्जाद और सारिका को गिफ्ट दिए।

बगल के गाँव से आये हुए एक मौलाना जिनका सज्जाद और उनके भाई सहित सभी बहुत आदर कर रहे थे वो सारिका को गिफ्ट देते हुए सज्जाद की अम्मी से बोले ‘अरे नादिरा बीबी अब देर मत करो जल्दी से इस लड़की के आँचल में सज्जाद को बाँध दो।’

बेगम नादिरा ने कहा ‘हाँ मौलाना साहब बस दो – चार दिनों में ही ये सज्जाद की बेगम बन जायेगी। आखिर सज्जाद यहाँ ज्यादा रुक भी तो नहीं सकता उसे अपने काम से इस्लामाबाद भी तो जाना होगा।’

सारिका ने बेगम नादिरा से अपनी और सज्जाद की दो – चार दिनों शादी होने की बात सुनी तो ख़ुशी उसके चेहरे से झलक उठी।

उसे यूँ खुश होते हुए देखकर मौलाना का चेहरा भी खुशगवार हो गया था।

उस रात सोने से पहले सज्जाद की एक भाभी ने ‘सज्जाद से हँसते हुए कहा ‘ऐ सज्जाद मियां पहले जो किया होगा वो किया होगा पर इस हवेली में हवेली के ही दस्तूर चलेंगे।’

भाभी की बात सुनके सज्जाद और सारिका ने उन्हें सवालिया निगाहों से देखा तो वे और हँसते हुए बोली ‘सज्जाद मिया अब आप अपनी प्रेमिका से हमबिस्तरी का ख्याल उससे शादी के बाद ही लाना। तब तक तुम दोनों अलग रहोगे। हाँ बात करने पर कोई पाबन्दी नहीं है।’

भाभी की बात सुनके सारिका वहां से जाने लगी तो उसके कानो में सज्जाद की आवाज़ पड़ी ‘भाभीजान ये तो जुल्म है।’

और यूँ उस रात सारिका सोई भले ही तन्हा हो पर सज्जाद कभी ख्यालो में तो कभी ख्वाबों में उसके साथ रहा था।

अगली सुबह जब वो उठी तो उसने देखा बेगम नादिरा उसकी और सज्जाद की शादी की तैयारियों में मशगूल हो चुकी थी।

क्रमशा :
–सुधीर मौर्य

सुधीर मौर्य

नाम - सुधीर मौर्य जन्म - ०१/११/१९७९, कानपुर माता - श्रीमती शकुंतला मौर्य पिता - स्व. श्री राम सेवक मौर्य पत्नी - श्रीमती शीलू मौर्य शिक्षा ------अभियांत्रिकी में डिप्लोमा, इतिहास और दर्शन में स्नातक, प्रबंधन में पोस्ट डिप्लोमा. सम्प्रति------इंजिनियर, और स्वतंत्र लेखन. कृतियाँ------- 1) एक गली कानपुर की (उपन्यास) 2) अमलतास के फूल (उपन्यास) 3) संकटा प्रसाद के किस्से (व्यंग्य उपन्यास) 4) देवलदेवी (ऐतहासिक उपन्यास) 5) मन्नत का तारा (उपन्यास) 6) माई लास्ट अफ़ेयर (उपन्यास) 7) वर्जित (उपन्यास) 8) अरीबा (उपन्यास) 9) स्वीट सिकस्टीन (उपन्यास) 10) पहला शूद्र (पौराणिक उपन्यास) 11) बलि का राज आये (पौराणिक उपन्यास) 12) रावण वध के बाद (पौराणिक उपन्यास) 13) मणिकपाला महासम्मत (आदिकालीन उपन्यास) 14) हम्मीर हठ (ऐतिहासिक उपन्यास ) 15) अधूरे पंख (कहानी संग्रह) 16) कर्ज और अन्य कहानियां (कहानी संग्रह) 17) ऐंजल जिया (कहानी संग्रह) 18) एक बेबाक लडकी (कहानी संग्रह) 19) हो न हो (काव्य संग्रह) 20) पाकिस्तान ट्रबुल्ड माईनरटीज (लेखिका - वींगस, सम्पादन - सुधीर मौर्य) पत्र-पत्रिकायों में प्रकाशन - खुबसूरत अंदाज़, अभिनव प्रयास, सोच विचार, युग्वंशिका, कादम्बनी, बुद्ध्भूमि, अविराम,लोकसत्य, गांडीव, उत्कर्ष मेल, अविराम, जनहित इंडिया, शिवम्, अखिल विश्व पत्रिका, रुबरु दुनिया, विश्वगाथा, सत्य दर्शन, डिफेंडर, झेलम एक्सप्रेस, जय विजय, परिंदे, मृग मरीचिका, प्राची, मुक्ता, शोध दिशा, गृहशोभा आदि में. पुरस्कार - कहानी 'एक बेबाक लड़की की कहानी' के लिए प्रतिलिपि २०१६ कथा उत्सव सम्मान। संपर्क----------------ग्राम और पोस्ट-गंज जलालाबाद, जनपद-उन्नाव, पिन-२०९८६९, उत्तर प्रदेश ईमेल ---------------sudheermaurya1979@rediffmail.com blog --------------http://sudheer-maurya.blogspot.com 09619483963