कविता

मेरे घर भी आ जाइए

हे मेरे पूर्वजों -पित्तरोंइस समय पितृपक्ष चल रहा है,आप सबको पता ही हैक्योंकि शोर भी बहुत है।हर कोई तर्पण पिंडदान श्राद्ध कर रहा है,मानसिक रूप से अपने पुरखों को याद कर रहा है।उनके पूर्वज उनके घर आ रहे हैंकोए के रूप में उनके श्राद्ध का भोजन खा रहे हैंअपने वंशजों के कल्याण,सुख समृद्धि का आशीर्वाद दे रहे हैं।फिर आप मेरे घर क्यों नहीं आ रहे हैंहमको क्यों रुला रहे हैं?हम भी तो आपके वंशज हैं,माना कि हम श्रवण कुमार नहीं है,हमने आपकी सेवा नहीं कीआपका मान सम्मान नहीं कियानित अपमान उपेक्षित कियाखून के आंसू रुलाएंचैन से मरने भी नहीं दिया,आपकी हर सीख की उपेक्षा की।पर अब तो आप दूसरी दुनिया में होहम सबसे बहुत दूर होअब तो हम आपको अपमानित उपेक्षित नहीं करतेया कहें कर ही नहीं सकतेआप भी अब हमें भी कभी कुछ नहीं कहते?पर अब आप हमारी उपेक्षा करआखिर क्या कहना चाहते हैं?ये भी तो हमें नहीं बताते हैं।शिकवा शिकायतों का दौर चलता ही रहेगा।अब तो सब भूल जाइएऔर मेरे क्या अपने घर फिर से आ जाइएऔर जो भी मेरी व्यवस्था हैउसे अधिकार पूर्वक ग्रहण कीजिएअपने बच्चों को आशीर्वाद दीजिए,हमारे श्राद्ध भोज का तो सम्मान कीजिए।आप हमारे बड़े बुजुर्ग, हमारे पुरखे हैं,इसका तो मान रखा लीजिएऔर हमारी भूल माफ कीजिएऔर एक बार फिर पित्तर रुप मेंमेरे घर भी आ जाइए,पितृपक्ष का तो सम्मान कीजिए,अपने बेटे बहू का न सही तोअपने नाती पोतों का तो ख्याल कीजिएकम से कम इतना तो मान लीजिएऔर हमारा कल्याण कीजिए।

हे मेरे पूर्वजों -पित्तरों

इस समय पितृपक्ष चल रहा है,

आप सबको पता ही है

क्योंकि शोर भी बहुत है।

हर कोई तर्पण पिंडदान श्राद्ध कर रहा है,

मानसिक रूप से अपने पुरखों को याद कर रहा है।

उनके पूर्वज उनके घर आ रहे हैं

कोए के रूप में उनके श्राद्ध का भोजन खा रहे हैं

अपने वंशजों के कल्याण,

सुख समृद्धि का आशीर्वाद दे रहे हैं।

फिर आप मेरे घर क्यों नहीं आ रहे हैं

हमको क्यों रुला रहे हैं?

हम भी तो आपके वंशज हैं,

माना कि हम श्रवण कुमार नहीं है,

हमने आपकी सेवा नहीं की

आपका मान सम्मान नहीं किया

नित अपमान उपेक्षित किया

खून के आंसू रुलाएं

चैन से मरने भी नहीं दिया,

आपकी हर सीख की उपेक्षा की।

पर अब तो आप दूसरी दुनिया में हो

हम सबसे बहुत दूर हो

अब तो हम आपको अपमानित उपेक्षित नहीं करते

या कहें कर ही नहीं सकते

आप भी अब हमें भी कभी कुछ नहीं कहते?

पर अब आप हमारी उपेक्षा कर

आखिर क्या कहना चाहते हैं?

ये भी तो हमें नहीं बताते हैं।

शिकवा शिकायतों का दौर चलता ही रहेगा।

अब तो सब भूल जाइए

और मेरे क्या अपने घर फिर से आ जाइए

और जो भी मेरी व्यवस्था है

उसे अधिकार पूर्वक ग्रहण कीजिए

अपने बच्चों को आशीर्वाद दीजिए,

हमारे श्राद्ध भोज का तो सम्मान कीजिए।

आप हमारे बड़े बुजुर्ग, हमारे पुरखे हैं,

इसका तो मान रखा लीजिए

और हमारी भूल माफ कीजिए

और एक बार फिर पित्तर रुप में

मेरे घर भी आ जाइए,

पितृपक्ष का तो सम्मान कीजिए,

अपने बेटे बहू का न सही तो

अपने नाती पोतों का तो ख्याल कीजिए

कम से कम इतना तो मान लीजिए

और हमारा कल्याण कीजिए। 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921