कविता

पितृ हमारे शुभचिंतक

ये हमारे महसूस करने पर निर्भर हैकि पितृ हमारे पूर्वज ही तो हैंजो आज हमसे दूर दूसरी दुनिया में हैं,पर हम उनकी नजरों सेएक पल भी ओझल नहीं हैं।वे कल भी हमारे लिए चिंतित रहते थेऔर आज भी वे ही हमारेसबसे बड़े शुभचिंतक हैं।हम कुछ भी करें, कुछ भी कहेंउन्हें भी फर्क पड़ता है,पर इस बात को नजरंदाज हम नहीं कर सकतेकि पितृपक्ष में वे हमारे पास जरुर आते हैं।हमें अपना आशीर्वाद देकर चले जाते हैं।यह अलग बात है कि अपनी व्यस्तता की आड़ मेंहम आप उनके आगमन का आभास नहीं कर पाते हैं।मैं तो कहता हूं पितृपक्ष तो बस पित्तरों के लिए बहाना है,क्योंकि उन्हें अपने वंशजों से इसी समय मिलने बिना सूचना के आना जाना है,क्योंकि उन्हें बड़ा शुभचिंतककिसी दुनिया में न कोई अपना है,यह बात कौन कितना जानता समझता हैये सबका अपना अपना गाना है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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