नज्म
जिंदगी तुझमें ठहर न जाए कहीं
इश्क़ में हद से गुजर न जाए कहीं
बज़्म में अपने बुलातो हो बार-बार
दर्द ए दिल फिर उभर न जाए कहीं
जो आग सुलग रही बहक उठेगी
हवा का झोंका गुजर न जाए कहीं
हर कदम पर मुश्किल से हालात हैं
डर कर जज़्बात मर न जाए कहीं
यह ज़ुल्म की बात जमाना सुन लेगा
देखना इल्ज़ाम मेरे सर न जाए कहीं
मुझसे मेरे हालात पर जिरह न कर
सामने देख आँखें भर न जाए कहीं
— सपना चन्द्रा