धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

संस्कार

व्यवहार घर का कलश और इंसानियत घर की तिजोरी कहलाती है| मधुर वाणी घर की धन दौलत और शांति घर की लक्ष्मी कहलाती है| पैसा घर का मेहमान और एकता घर की ममता कहलाती है| व्यवस्था घर की शोभा और समाधान ही घर का सच्चा सुख कहलाता है| जिनके पास सिर्फ सम्पति होती है उसकी will बनती है| और जिसके पास साथ में संस्कार भी होते हैं उसकी good will बनती हैं । जो खुश मिजाज और मिलनसार होता है उसके साथ हर किसी का प्यार होता है ।जिसका सबके साथ मधुर व्यवहार होता है ।उसके साथ हर किसी का प्यार होता है । जिसके मन में सबके प्रति सत्कार होता है ।उसके साथ हर किसी का प्यार होता है ।जिसके मन में समता का संस्कार होता है ।उसके साथ हर किसी का प्यार होता है ।जिसके मन में ना गुस्सा, ना तकरार होता है।उसके साथ हर किसी का प्यार होता है । समस्या खड़ी किसने की ? हर मनुष्य के जैसे भाव वैसे मन, वचन और काया करते कार्य। कर्म और संस्कार है उदगम पर्याय। भाव बनते है उसी के आधारभूत तथ्य।
हर प्राणी चाह्ता है सुख और शान्ति। पर हर कोई नही जानता उसको पाने की असली युक्ति। तभी तो उसकी हर क्रिया कर्मों की श्रंखला बढाती। सुख और शान्ति के लिये वह भौतिकजगत के पीछे-पीछे भागता।जो अपना नही उसको शाश्वत मानता।
आत्मा के अनंत आनन्द और अनन्त सुखों से दूर भागता। हमारा व्यवहार हमारे मनोभाव दर्शाता है और मन के भाव संस्कार पर निर्भर है। हमारे बुद्धि कौशल -सोच एवं निर्णय के आधार पर हम सम्भावनाओं की दिशा तय करते है ।क्योंकि बिन्दु से सिन्धु बनाता जो प्रभुता का मार्ग दिखाता जो हिम खंडो सम अविरल गलकर तरूवर ज्यों रहता है फलता वो जैसे स्थायी धर्म स्थापना हेतु  भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उकसा कर महाभारत के युद्ध में -ख़ून की नदियाँ,लाशें ढा दी और अर्जुन के मनोभाव पवित्र थे । पाप का विनाश और धर्म की स्थापना उद्देश्य था। असली तत्व तो संस्कार-संगत और भावना का है जिससे प्रेरित होकर काम किया गया । भावनाओं के अथाह समन्दर मे भक्ति की उठती-गिरती अनगिनत हिलोरों से एक व्यक्ति उदास मन से सेवा करता है दूसरा अत्यंत दया-सहानुभूति-उदारता-प्रेमपूर्वक करता है।वही सम्भावनाओं का सिन्धु असीम हो जाता हैं। यह वक़्त लम्हो की बाँहें थामे सरक रहा हैं । हर बीता हुआ पल विकास का परिचय दे रहा हैं । हम अपने प्रगति के हर मुक़ाम पर जागरण की मशाल लिए एक मिसाल बन कर निखरे । तेज़ी से भागते विकास के प्रकाश में दो पल सुस्ताए,ख़ुद को टंटोले, सोचे कँटीली झाड़ियों से छन-छन कर आती धूप सी ज़िंदगी मे संभावनाएं कभी खत्म नहीं होगी । बस +ve भावनाओं को फलने फूलने दीजिये। हैं ज़िंदगी का यें अजीब सा इतेफ़ाक । रहें विशवास और पुरुषार्थ से दामन भरा । किस मोड़ पर खड़ी मिल जाए जीत या हार ।होना न कभी असफलता से उदास / हताश । भुलना नहीं कभी जीवन के उसूल ओर संस्कार। खाशियत मत पूछो इंसान की जांच लीजिये संस्कार। कैसा है इंसान यह वस्त्र नहीं, यह तय करता है व्यवहार। दूषित वस्त्र केवल स्वयं अथवा पड़ोस तक ही दुर्गंध फैलाने की ताकत रखता है।परन्तु दूषित विचार सम्पूर्ण समाज, राष्ट्र को दूषित और प्रदूषित कर सकता है। अतः वस्त्र की स्वच्छता से अधिक वैचारिक स्वच्छता के प्रति सजगता जरूरी है। अपने जीवन में हो स्वच्छता भरे विचारों की शृंखला जो हम ऐसे रखे की जिसके लिए मन में भाव हो सिर्फ़ अर्पण और समर्पण का। जब मन के आंगन में स्नेह का संस्कार फलता  है तो बड़ी सहजता के साथ प्रेम का व्यवहार फलता है ।सत्य जब कटुता व क्रोध के भाव और प्रभाव से दूर रहता है तो उस जीवन में सतत शान्ति व सुख का सरस निर्झर बहता है।तभी तो कहा है की चंदन से वंदन ज्यादा शीतल होता है योगी होने की बजाय उपयोगी होना ज्यादा अच्छा है| प्रभाव अच्छा होने की बजाय स्वभाव अच्छा होना ज्यादा जरुरी है और विद्या के साथ संस्कार होना ज्यादा जरुरी है| तभी जीवन उज्जवल होगा ।

— प्रदीप छाजेड़

प्रदीप छाजेड़

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