कविता

मैं गृहणी हूँ

मैं गृहणी हूँ घर परिवार की धुरी हूँ

सब समस्याओं को हल करती हूँ

दुख,दर्द में भी धैर्य रखती हूँ

सबकी इच्छाओं का मान रखती हूँ

सब सपनों को मिटाकर खुश रहती हूँ

औरत होना आसान नहीं होता सबको हँसाती हूँ

अपने दर्द को छिपाकर मुस्कराती हूँ

न थकती हूँ न रुकती बस चलती चली जाती हूँ

बच्चों की खातिर दुनियाँ से लड़ जाती हूँ

नारी हूँ कोमल हूँ कमजोर नहीं हूँ

आसमान में उड़ने की ताकत रखती हूँ

कर्तव्य का बखूबी मैं निर्वाह करती हूं

संस्कार,सभ्यता की सीख बच्चों को देती हूँ

मैं ग्रहलक्ष्मी और घर की पूर्णगामिनी हूँ

सब मन होता उदास घर के कोने में रोती हूँ

दोनों कुलों की लाज की रक्षा करती हूँ

सहनशील,उदारता की मूर्ति हूँ

अपने ऊपर नाज हमें मैं नारी हूँ.[….]

— पूनम गुप्ता 

पूनम गुप्ता

मेरी तीन कविताये बुक में प्रकाशित हो चुकी है भोपाल मध्यप्रदेश