कविता

अनजानी राहें

नया मुकाम, अनजानी राहें।

संग उत्साह मिले वो जो चाहें।।

नई सोच, इरादा बुलन्द है।

यह जीवन लगे बस एक छन्द है।।

निर्भय होकर आगे बढ़ना।

विवेक संग विकास की सीढ़ी चढ़ना।।

दृढ़ संकल्प, वचन से न पीछे हटना।

श्रद्धा, विश्वास, प्रेम, इस धार पर डटना।।

प्रभु से मिलन कैसे हो साक्षात्कार।

आए कोई लेकर दीप, हटाने घोर अंधकार।।

आऐगा कोई जब करने यह, अद्भुत चमत्कार।

सात्विक मन से करे हृदय स्वीकार।।

मत उलझ झूठी चाहों में।

जीवन बीते फिर आहों में।।

प्रभु में लगे ऐसे प्रीति।

शुद्ध होवे फिर सारी नीति।।

दूर बहुत है अभी वो मंजिल।

अनजानी राहों में, डरता है दिल।।

लेकर नाम प्रभु का इस सहारे चल।

प्रदीप हाथ रख, जा पहुंचेगा तू मंजिल।।

क्या अच्छा, क्या बुरा, समझ नहीं आता।

इन्हीं दो शब्दों में उलझ कर रह जाता।।

कुछ अच्छा चाहूं करना, पर कर नहीं पाता।

समझ न आए क्या से क्या हो जाए।।

राहें जरूर हैं अनजानी।

लेकिन यहाँ पर ना कर नादानी।।

पतंगे की तरह होगी जिन्दगी गंवानी।

जीवन एक पड़ाव है, फिर करनी होगी रवानी।।

संसार है केवल एक झंझावत।

ये दिन जिन्दगी के फिर न आवत।।

जान ब्रह्मज्ञान को दूसरों को समझावत।

शास्त्र, ग्रंथों में लिखी निरी कहावत।।

दृढ़ संकल्प कर, प्रभु हैं तेरे साथ।

ना छोड़ेगा अधूरी मंजिल में साथ।।

ना तुझसे फर्क करे, ना पूछे तेरी जात।

फायदा ये फायदा, ना देवे कभी मात।।

— आचार्य शीलक राम

आचार्य शीलक राम

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