मध्य प्रदेश का निजाम
चार राज्यों के नतीजा 3 दिसंबर को नतीजे आ चुके थे, भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता खुशी मना रहे थे, मगर बड़े नेताओं के मन में शंकाओ का लहर चल रहा थाl भाजपा हाईकमान चुनाव के दौरान एक बार भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री चेहरे का जिक्र भी नहीं किया, जिस पुरे चुनाव में गुटबाजी देखने को नहीं मिला सभी बड़े नेता अपने-अपने क्षेत्र में जी जान से प्रचार-प्रसार किया!
अपने कुर्सी को लेकर चार बार के लगातार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूर्ण रूप से निश्चित थेl मगर पर्दे के पीछे राजनीतिक खेल चल रहा था, सभी बडे़ नेता मुख्यमंत्री के कुर्सी को अपना समझकर अपनी ताकत झोंक रहे थेl सब कुर्सी के खेल में उलझे भाजपा हाईकमान के मंसूबे ना समझ सके, भाजपा हाईकमान अभी से 2024 लोकसभा चुनाव के लिये मोहरे दांव पर लगाना शुरू कर दिया हैंl जिसमें मध्यप्रदेश के नये मुख्यमंत्री मोहन यादव एक बेहतर प्रयोग साबित होगें, भाजपा की नजर यादव वोटबैंक पर जा टिकी हैं, सामाजिक न्याय के आंदोलन में यादवों का बेहतर योगदान रहता हैं, उत्तर प्रदेश और बिहार यादव का गढ़ माना जाता हैंl यहां यादव वोटर का भाजपा में जाना संभव नहीं है, मगर हरियाणा,राजस्थान और मध्यप्रदेश जैसे राज्य में यादव वोटर की संख्या अच्छी खासी हैं,जो नेतृत्वविहीन कभी कांग्रेस कभी भाजपा के पाले में जाते रहते हैंl
भाजपा अपने रणनीति से एक तीर दो निशाने लगा रखी है, विपक्षी दलों में बेचैनी और रणनीति का अभाव साथ में एक बड़े समूह को अपने पाले में लाने का प्रयास हैं l 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने युवा नेता अरुण यादव को मध्य प्रदेश कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया, उस समय नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आयाl मगर कांग्रेस हाईकमान ने गलती करते हाशिये पर गये अपने विश्वासपात्र नेता कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर मध्यप्रदेश में कमान को अपने हाथ में रखना चाहा मगर सबसे बड़ी गलती अरुण यादव के राजनीतिक कद को काटकर कर दियाl
फिलहाल मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले कमलनाथ और सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच के राजनीतिक बयानबाजी काफी चर्चित रहा मगर नतीजे अखिलेश यादव के अनुकूल नहीं रहेl मामला जीत का नहीं वोट बैंक जो बढ़ नहीं सका और परंपरावादी वोटर भाजपा की ओर चले गये l कांग्रेस की ओर से मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी के दरवाजे हमेशा-हमेशा के लिये बंद हो गये!
— अभिषेक कुमार शर्मा