दोस्ती हो तो ऐसी
गांव के दो धनाढ्य कृषक परिवार हरिया और रतिराम आपस में पड़ोसी थे और बहुत घनिष्ठ मित्र । वर्षो से दोनों की दोस्ती मशहूर थी । धीरे धीरे दोनों युवावस्था से वृद्धावस्था में आगये । अब परिवार दूसरी और तीसरी पीढ़ी के हाथ में आगया । दोनों के खेत भी आपस में चिपटे हुये थे । आज की पीढ़ी आपस में सामंजस्य नहीं बैठा पाती । यही कारण मन मुटाव शुरु हो जाते हैं ।
खेत की मेंढ को लेकर दोनों के बेटों में इतना वाद विवाद शुरू हुआ कि बात कोर्ट तक जा पहुँची । हरिया और रति राम ने बेटों को समझाने की बहुत कोशिश की कि मामला सुलझ जाये पर वह तो सुलझने की जगह और उलझता ही जा रहा था और एक दिन तो उन दोनों के बेटों का झगड़ा इतना बढ़ गया कि लाठियां चल गयीं और दोनों के बेटों के सर फट गये ।जब थाने में बात पहुँची तो इन्सपैक्टर ने हरिया और रतिराम को बुलाया पर जब दोनों नहीं मिले तब पुलिस ने दोनों को गांव में ढूंढा तो आराम से गाँव के बाहर चोपड़ बिछाये अपने खेल में मस्त थे और आपस में चुहलबाजी कर रहे थे । जब थाने में इंसपैक्टर को बताया तब वह दोनों के बेटों से बोला तुमको तो अपने पिताओं से सीखना चाहिये कि आपस में दोस्ती कैसे निभाई जाती है। तुम तो अपने संस्कार भूल ही गये और अपने बच्चों को भी गलत संस्कार दे रहे हो । दोस्ती हो तो ऐसी कि उदाहरण बन जाये ।
— डा. मधु आंधीवाल